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महात्मा गांधी पर निबंध – Essay On Mahatma Gandhi In Hindi

Essay On Mahatma Gandhi In Hindi  : दोस्तो आज हमने महात्मा गांधी पर निबंध कक्षा 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9 ,10, 11, 12 के विद्यार्थियों के लिए लिखा है।

इस लेख के माध्यम से हमने एक Mahatma Gandhi जी के जीवन का और उनके आंदोलनों वर्णन किया है इस निबंध की सहायता से हम भारत के सभी लोगों को हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी और उनके विचारों के बारे में बताएंगे।

Short Essay On Mahatma Gandhi In Hindi

महात्मा गांधी हमारे देश के राष्ट्रपिता माने जाते हैं उन्हें बच्चा-बच्चा बापू के नाम से भी जानता है। Mahatma Gandh i ने हमारे देश को आजादी दिलाने के लिए अंग्रेजों से इन अहिंसा पूर्वक की लड़ाई लड़ी थी।

महात्मा गांधी का पूरा नाम मोहनचंद करमचंद गांधी था। उनका जन्म 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात के पोरबंदर में हुआ था।

Essay On Mahatma Gandhi In Hindi

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महात्मा गांधी की प्रारंभिक शिक्षा गुजरात के ही एक स्कूल में हुई थी और उन्होंने इंग्लैंड से वकालत की पढ़ाई करी थी। वहां पर उन्होंने देखा कि अंग्रेज लोग काले गोरे का भेद भाव करते हैं

और भारतीय लोगों से बर्बरता पूर्वक व्यवहार करते है। यह बात में बिल्कुल भी अच्छी नहीं लगी इसके खिलाफ उन्होंने भारत आकर आंदोलन करने की ठानी।

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भारत आते ही Mahatma Gandhi ने गरीबों के लिए कई हिंसक आंदोलन किए और अंत में उन्होंने “भारत छोड़ो आंदोलन” प्रारंभ किया जिसके कारण हमारे देश को आजादी मिली थी।

भारत की आजादी के 1 साल बाद महात्मा गांधी जी की 30 जनवरी 1948 में नाथूराम गोडसे नामक व्यक्ति ने गोली मारकर निर्मम हत्या कर दी थी।

Essay On Mahatma Gandhi In Hindi 400 Words

महात्मा गांधी एक महान व्यक्तित्व के व्यक्ति थे। उन्हें महात्मा की उपाधि इसलिए दी गई है क्योंकि उन्होंने हमारे भारत देश में जन्म लेकर हमारे देश के लोगों के लिए बहुत कुछ किया है। महात्मा गांधी अहिंसा और सत्य के पुजारी थे। उन्हें झूठ बोलने वाले व्यक्ति पसंद नहीं है।

Mahatma Gandhi का जन्म गुजरात राज्य के एक छोटे से शहर पोरबंदर में 2 अक्टूबर 1869 को हुआ था उनके पिता का नाम करमचंद गांधी था जो की अंग्रेजी हुकूमत में एक दीवान के रूप में कार्य करते थे।

उनकी माता का नाम पुतलीबाई था जो कि गृहणी थी वे हमेशा पूजा पाठ में लगी रखी थी इसका असर हमें गांधी जी का सीन देखने को मिला है वह भी ईश्वर में बहुत आस्था रखते है।

महात्मा गांधी के जीवन पर राजा हरिश्चंद्र के व्यक्तित्व का बहुत अधिक प्रभाव था इसी कारण उनका झुकाव सत्य के प्रति बढ़ता गया।

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Mahatma Gandhi का व्यक्तित्व है बहुत ही साधारण और सरल था इसका असर हमें उनके अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलनों में देखने को मिलता है उन्होंने कभी भी हिंसात्मक आंदोलन नहीं किए हुए हमेशा अहिंसा और सत्याग्रह को हथियार के रूप में काम में लेते थे।

उन्होंने अपना पूरा जीवन हमारे भारत देश के लिए समर्पित कर दिया था उन्हीं के अथक प्रयासों से हम आज एक आजाद देश में सुकून की सांस ले पा रहे है। महात्मा गांधी जी ने भारत में अपने जीवन का पहला आंदोलन चंपारण से प्रारंभ किया गया था

जिसका नाम बाद में चंपारण सत्याग्रह ही रख दिया गया था इस आंदोलन में उन्होंने किसानों को उनका हक दिलाने के लिए अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन किया था।

इसी प्रकार उन्होंने खेड़ा आंदोलन, असहयोग आंदोलन, नमक सत्याग्रह (दांडी यात्रा) जैसे और भी आंदोलन किए थे जिसके कारण अंग्रेजी हुकूमत के पैर उखड़ने लगे थे।

उन्होंने अपने जीवन का अंतिम आंदोलन भारत छोड़ो आंदोलन किया था जो कि अंग्रेजों को मुझसे भारत को आजादी दिलाने के लिए हुआ था इसी आंदोलन के कारण हमें वर्ष 1947 में अंग्रेजी हुकूमत से आजादी मिली थी।

लेकिन गांधीजी भारत की इस आजादी को ज्यादा दिन देख नहीं पाए क्योंकि आजादी के 1 साल बाद ही नाथूराम गोडसे नामक व्यक्ति ने 30 जनवरी 1948 को गोली मारकर उनकी हत्या कर दी थी। यह दिन हमारे देश के लिए बहुत ही दुखद था इस दिन हमने एक महान व्यक्ति को खो दिया था।

नाथूराम गोडसे ने गांधी जी की हत्या तो कर दी लेकिन उनके विचारों को नहीं दबा पाया आज भी उनके विचारों को अमल में लाया जाता है।

Essay On Mahatma Gandhi In Hindi 1800 words

प्रस्तावना –

महात्मा गांधी एक स्वतंत्रता सेनानी, राजनीतिज्ञ, समाज सुधारक और महान व्यक्तित्व के व्यक्ति थे। इसीलिए भारत में उन्हें राष्ट्रपिता और बापू के नाम से पुकारा जाता है। भारत का प्रत्येक व्यक्ति महात्मा गांधी के विचारों से प्रभावित है। उनके विचारों और उनके द्वारा किए गए भारत के लिए आंदोलन को कभी भुलाया नहीं जा सकता है।

उन्होंने अपना पूरा जीवन भारत के लोगों को समर्पित कर दिया था इसी समर्पण की भावना के कारण उन्होंने भारत के लोगों के हितों के लिए अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ कई आंदोलन आंदोलन किए थे जिनमें वे पूरी तरह से सफल रहे थे। उनका अंतिम आंदोलन भारत छोड़ो आंदोलन अंग्रेजी हुकूमत के ताबूत पर अंतिम कील साबित हुई।

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उनके सम्मान में पूरे विश्व भर में 2 अक्टूबर को अहिंसा दिवस के रूप में मनाया जाता है और भारत में महात्मा गांधी जयंती के रूप में मनाया जाता है। महात्मा गांधी आज हमारे बीच में नहीं है लेकिन उनके विचार हमेशा हमारे दिलों में जिंदा रहेंगे।

प्रारंभिक जीवन –

महात्मा गांधी का जन्म एक साधारण परिवार में हुआ था उनके पिताजी करमचंद गांधी अंग्रेजी हुकूमत के दीवान के रूप में काम करते थे उनकी माताजी पुतलीबाई गृहणी थी वह भक्ति भाव वाली महिला थी जिन का पूरा दिन लोगों की भलाई करने में बीतता था।

जिसका असर हमें गांधी जी के जीवन पर भी देखने को मिलता है। महात्मा गांधी जी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात राज्य की पोरबंदर शहर में हुआ था। महात्मा गांधी जी का पूरा नाम मोहनदास करमचंद गांधी था । महात्मा गांधी की प्रारंभिक पढ़ाई गुजरात में ही हुई थी।

Mahatma Gandhi बचपन में अन्य बच्चों की तरह ही शरारती थे लेकिन धीरे-धीरे उनके जीवन में कुछ ऐसी घटनाएं घटती गई जिनके कारण उनके जीवन में बदलाव आना प्रारंभ हो गया था। उनका विवाह 13 साल की छोटी सी उम्र में ही कर दिया गया था उनकी पत्नी का नाम कस्तूरबा था जिन्हें प्यार से लोग “बा” के नाम से पुकारते थे। उस समय बाल विवाह प्रचलन में था इसलिए गांधी जी का विवाह बचपन में ही कर दिया गया था।

उनके बड़े भाई ने उनको पढ़ने के लिए इंग्लैंड भेज दिया था। 18 वर्ष की छोटी सी आयु में 4 सितंबर 1888 को गांधी यूनिवर्सिटी कॉलेज लन्दन में कानून की पढाई करने और बैरिस्टर बनने के लिए इंग्लैंड चले गए। 1891 में महात्मा गांधीजी इंग्लैंड से बैरिस्टरी पास करके सुदेश आए और मुंबई में वकालत प्रारंभ कर दी।

अहिंसावादी जीवन का प्रारंभ –

महात्मा गांधी के जीवन में एक अनोखी घटना घटने के कारण उन्होंने अहिंसा वादी जीवन जीने का प्रण ले लिया था। दक्षिण अफ्रीका में प्रवास के दौरान महात्मा गांधी ने 1899 के एंगलो बोअर युद्ध के समय स्वास्थ्य कर्मी के तौर पर मदद की थी लेकिन इस युद्ध की विभीषिका को देख कर अहिंसा के रास्ते पर चलने का कदम उठाया था इसी के बल पर उन्होंने कई आंदोलन अनशन के बल पर किये थे जो कि अंत में सफल हुए थे।

उन्होंने ऐसे ही दक्षिण अफ्रीका के जोल विद्रोह के समय एक सैनिक की मदद की थी जिसे लेकर वे 33 किलोमीटर तक पैदल चले थे और उस सैनिक की जान बचाई थी। जिसे प्रतीत होता है कि महात्मा गांधी के जीवन के प्रारंभ से ही रग-रग में मानवता और करुणा की भावना भरी हुई थी।

राजनीतिक जीवन का प्रारंभ –

दक्षिण अफ्रीका में जब गांधी जी वकालत की पढ़ाई कर रहे थे उसी दौरान उन्हें काले गोरे का भेदभाव झेलना पड़ा। वहां पर हमेशा भारतीय एवं काले लोगों को नीचा दिखाया जाता था। एक दिन की बात है उनके पास ट्रेन की फर्स्ट एसी की टिकट थी लेकिन उन्हें ट्रेन से धक्के मार कर बाहर निकाल दिया गया और उन्हें मजबूरी में तृतीय श्रेणी के डिब्बे में यात्रा करनी पड़ी।

यहां तक कि उनके लिए अफ्रीका के कई होटलों में उनका प्रवेश वर्जित कर दिया गया था। यह सब बातें गांधीजी के दिल को कचोट गई थी इसलिए उन्होंने राजनीतिक कार्यकर्ता बनने का निर्णय लिया ताकि वे भारतीयों के साथ हो रहे भेदभाव को मिटा सके।

भारत में महात्मा गांधी का प्रथम आंदोलन –

महात्मा गांधी जी का भारत में प्रथम आंदोलन अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ का क्योंकि अंग्रेजों ने किसानों से खाद्य फसल की पैदावार कम करने और नील की खेती बढ़ाने को जोर दे रहे थे और एक तय कीमत पर अंग्रेजी किसानों से नील की फसल खरीदना चाहते थे।

इसके विरोध में Mahatma Gandhi जी ने अंग्रेजों के खिलाफ वर्ष 1917 में चंपारण नाम के गांव में आंदोलन छेड़ दिया था। अंग्रेजों की लाख कोशिशों के बाद भी गांधीजी मानने को तैयार नहीं थे अंत में अंग्रेजों को गांधी जी की सभी बातें माननी पड़ी। बाद में इस आंदोलन को चंपारण आंदोलन के नाम से जाना गया।

इस आंदोलन की सफलता से गांधीजी में और विश्वास पैदा हुआ और उन्होंने जान लिया था कि अहिंसा से ही वे अंग्रेजों को भारत से बाहर खदेड़ सकते है।

खेड़ा सत्याग्रह –

खेड़ा आंदोलन में Mahatma Gandhi ने किसानों की स्थिति में सुधार लाने के लिए ही किया था। वर्ष 1918 में गुजरात के खेड़ा नाम के गांव में भयंकर बाढ़ आई थी जिसके कारण किसानों की सारी फसलें बर्बाद हो गई थी और वहां पर भयंकर अकाल की स्थिति उत्पन्न हो गई थी।

इतना सब कुछ होने के बाद भी अंग्रेजी हुकूमत के अफसर करो (Tax) में छुट नहीं करना चाहते थे। वह किसानों से फसल बर्बाद होने के बाद भी कर वसूलना चाहते थे। लेकिन किसानों के पास उन्हें देने के लिए कुछ नहीं था तो किसानों ने यह बात गांधी जी को बताई।

गांधीजी अंग्रेजी हुकूमत के इस बर्बरता पूर्वक निर्णय से काफी दुखी हुए फिर उन्होंने खेड़ा गांव से ही अंग्रेजों के खिलाफ अहिंसा पूर्वक आंदोलन छेड़ दिया। महात्मा गांधी के साथ आंदोलन में सभी किसानों ने हिस्सा लिया जिसके कारण अंग्रेजी हुकूमत के हाथ पांव फूल गए और उन्होंने खेड़ा के किसानों का कर (Tax) माफ कर दिया। इस आंदोलन को खेड़ा सत्याग्रह के नाम से जाना गया।

असहयोग आंदोलन –

अंग्रेजी हुकूमत के भारतीयों पर बर्बरता पूर्ण जुल्म करने और जलियांवाला हत्याकांड के बाद महात्मा गांधी जी को समझ में आ गया था कि अगर जल्द ही अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ कुछ नहीं किया गया तो यह लोग भारतीय लोगों को अपनी क्रूर नीतियों से हमेशा खून चूसते रहेंगे।

महात्मा गांधी जी पर जलियांवाला बाग हत्याकांड का बहुत गहरा प्रभाव पड़ा था जिसके बाद वर्ष 1920 में Mahatma Gandhi ने अंग्रेजों के खिलाफ असहयोग आंदोलन की शुरुआत कर दी । इस आंदोलन के अंतर्गत गांधी जी ने सभी देशवासियों से निवेदन किया कि वे विदेशी वस्तुओं का उपयोग बंद कर दें और स्वदेशी वस्तुएं अपनाएं।

इस बात का लोगों पर इतना असर हुआ कि जो लोग ब्रिटिश हुकूमत के अंदर काम करते थे उन्होंने अपने पदों से इस्तीफा देना चालू कर दिया था। सभी लोगों ने अंग्रेजी वस्तुओं का बहिष्कार करते हुए स्वदेशी सूती वस्त्र पहने लगे थे।

इस आंदोलन के कारण ब्रिटिश हुकूमत के पैर उखड़ने लगे थे। लेकिन आंदोलन ने बड़ा रूप ले लिया था और चोरा चोरी जैसे बड़े कांड होने लगे थे जगह-जगह लूटपाट हो रही थी। गांधी जी का अहिंसा पूर्ण आंदोलन हिंसा का रुख अपना रहा था। इसलिए गांधी जी ने असहयोग आंदोलन को वापस ले लिया। इस आंदोलन के कारण उन्हें 6 वर्ष की जेल की सजा भी हुई थी।

नमक सत्याग्रह –

ब्रिटिश हुकूमत की क्रूरता दिन प्रतिदिन भारतीयों पर बढ़ती ही जा रही थी। ब्रिटिश हुकूमत ने नया कानून पास करके नमक पर अधिक कर लगा दिया था। जिसके कारण आम लोगों को बहुत अधिक परेशानी हो रही थी।

नमक पर अत्यधिक कर लगाए जाने के कारण महात्मा गांधी जी ने 12 मार्च 1930 को अहमदाबाद के साबरमती आश्रम से नमक पर भारी कर लगाए जाने के विरोध में दांडी यात्रा प्रारंभ की जो कि 6 अप्रैल 1930 को गुजरात के दांडी नामक गांव में समाप्त हुई।

इस यात्रा में गांधी जी के साथ हजारों लोगों ने हिस्सा लिया था। दांडी गांव पहुंचकर गांधी जी ने ब्रिटिश हुकूमत के कानून की अवहेलना करते हुए खुद नमक का उत्पादन किया और लोगों को भी स्वयं नमक के उत्पादन करने के लिए प्रोत्साहित किया।

इस आंदोलन की खबर देश विदेश में आग की तरह फैल गई थी जिसके कारण विदेशी देशों का भी ध्यान इस आंदोलन की तरफ आ गया था यह आंदोलन गांधी जी की तरफ से अहिंसा पूर्वक लड़ा गया था जो कि पूर्णत: सफल रहा। इस आंदोलन को नमक सत्याग्रह और दांडी यात्रा के नाम से जाना जाता है।

नमक आंदोलन के कारण ब्रिटिश हुकूमत विचलित हो गई थी और उन्होंने इस आंदोलन में सम्मिलित होने वाले लोगों में से लगभग 80000 लोगों को जेल भेज दिया था।

भारत छोड़ो आंदोलन –

महात्मा गांधी जी ने ब्रिटिश हुकूमत को भारत से जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए 8 अगस्त 1942 को भारत छोड़ो आंदोलन प्रारंभ किया गया । इस आंदोलन की नींव उसी दिन पक्की हो गई थी जिस दिन गांधी जी ने नमक आंदोलन सफलतापूर्वक किया था।

उन्हें विश्वास हो गया था कि अंग्रेजों को अगर भारत से बाहर क देना है तो उसके लिए अहिंसा का रास्ता ही सबसे उत्तम रास्ता है। महात्मा गांधी ने यह आंदोलन कब छेड़ा जब द्वितीय विश्वयुद्ध चल रहा था और ब्रिटिश हुकूमत अन्य देशों के साथ युद्ध लड़ने में लगी हुई थी।

द्वितीय विश्वयुद्ध के कारण अंग्रेजों की हालत दिन प्रति दिन खराब होती जा रही थी उन्होंने भारतीय लोगों को लिखते विश्वयुद्ध में शामिल करने का निर्णय लिया। लेकिन भारतीय लोगों ने उन्हें नित्य विश्वयुद्ध से अलग रखने पर जोर दिया।

बाद में ब्रिटिश हुकूमत के वादा करने पर भारतीय लोगों ने द्वितीय विश्वयुद्ध में अंग्रेजों का साथ दिया। ब्रिटिश हुकूमत ने वादा किया था कि वे द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद भारत को स्वतंत्र कर देंगे। यह सब कुछ भारत छोड़ो आंदोलन के प्रभाव के कारण ही हो पाया और वर्ष 1947 में भारत को ब्रिटिश हुकूमत से आजादी मिल गई।

महात्मा गांधी का भारत छोड़ो आंदोलन पूर्ण रूप से सफल रहा। इसकी सफलता का श्रेय सभी देशवासियों को भी जाता है क्योंकि उन्हीं की एकजुटता के कारण इस आंदोलन में किसी भी प्रकार की हिंसा नहीं हुई और अंत में सफलता प्राप्त हुई।

उपसंहार –

Mahatma Gandhi बहुत ही सरल स्वभाव के व्यक्ति थे वे हमेशा सत्य और अहिंसा में विश्वास रखते थे। उन्होंने हमेशा गरीब लोगों का साथ दिया था। जब देश में जाति, धर्म और अमीर गरीब के नाम पर लोगों को बांटा जा रहा था तब गांधी जी ने ही गरीबों को साथ लेते हुए उन्हें “हरिजन” का नाम लिया और इसका मतलब भगवान के लोग होता है।

उनके जीवन पर भगवान बुद्ध के विचारों का बहुत प्रभाव था इसी कारण उन्होंने अहिंसा का रास्ता बनाया था। उनका पूरा जीवन संघर्षों से भरा हुआ था लेकिन अंत में उन्हें सफलता प्राप्त हुई थी। उन्होंने भारत देश के लिए जो किया है उसके लिए धन्यवाद सब बहुत कम है।

हमें उनके विचारों से सीख लेनी चाहिए आज लोग एक दूसरे से छोटी छोटी बात पर झगड़ा करने लगते हैं और हर एक छोटी सी बात पर लाठी और बंदूके चलाने लगते है। गांधी जी ने कहा था कि जो लोग हिंसा करते हैं वे हमेशा नफरत और गुस्सा दिलाने की कोशिश करते है। गांधीजी के अनुसार अगर शत्रु पर विजय प्राप्त करनी है तो हम अहिंसा का मार्ग भी अपना सकते है। जिसको अपनाकर गांधी जी ने हमें ब्रिटिश हुकूमत से आजादी दिलवाई थी।

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हम आशा करते है कि हमारे द्वारा Essay On Mahatma Gandhi In Hindi  आपको पसंद आया होगा। अगर यह लेख आपको पसंद आया है तो अपने दोस्तों और परिवार वालों के साथ शेयर करना ना भूले। इसके बारे में अगर आपका कोई सवाल या सुझाव हो तो हमें कमेंट करके जरूर बताएं।

10 thoughts on “महात्मा गांधी पर निबंध – Essay On Mahatma Gandhi In Hindi”

Rohit ji app ne sahi bola

apke essay ka koi app hai महात्मा गांधी एक महान व्यक्तित्व के व्यक्ति थे। उन्हें महात्मा की उपाधि इसलिए दी गई है क्योंकि उन्होंने हमारे भारत देश में जन्म लेकर हमारे देश के लोगों के लिए बहुत कुछ किया है। महात्मा गांधी अहिंसा और सत्य के पुजारी थे। उन्हें झूठ बोलने वाले व्यक्ति पसंद नहीं है।

बहुत सुन्दर प्रस्तुति

सराहना के लिए बहुत बहुत धन्यवाद प्रवीण विश्नोई जी, ऐसे ही हिंदी यात्रा पर आते रहे

Bhut Accha laga ye padh ke or hame ghadhi Ji ke bare me kafi jankari basil hui or isko Yaar Karna bhi easy hoga kyoki ye saral shbdo me tha or aasha karte he ese hi hame Jo chaye wo ese hi mile

Nishat khan ji, hum aap ko aise hi saral bhasha me content dete rahnge. Parsnsha ke liye aap ka bhut bhut Dhanyawad.

Mahatma Gandhi the legend me hamare liye kya kuch nhi kiya par tabh bhi kuch log unhe abhi bhi Bura Bolte h

Arti Nanda ji aap ne sahi bola aap chahe kitne bhi sahi hi log kuch na kuch to kahe ge, log to bhagvaan ko bhi dosh dete hai gandhi ji to bhi insaan the.

Mahatma gandhi bhale hee kyu na rahe lakin us kee yad aabhi bhee ham sab ke dilo dimag mai hai

Rohit ji app ne sahi bola, Mahatma gandhi ji ke vichar aaj bhi hamare saath hai.

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महात्मा गांधी पर निबंध 100, 150, 250, 500 शब्दों में | Mahatma Gandhi Essay in Hindi

दोस्तों आज के इस आर्टिकल में हम आपके लिए लेकर आए महात्मा गांधी पर निबंध 100, 150, 250, 500 शब्दों में। महात्मा गांधी भारत का बच्चा-बच्चा जानता है क्योंकि वह हमारे राष्ट्रपिता है। बच्चों को विद्यालय में महात्मा गांधी के बारे में बताया जाता है, ताकि विद्यार्थी भी उनके मार्गदर्शन पर चलकर एक आदर्श व्यक्ति बन सकें। इसीलिए अकसर विद्यार्थियों को परीक्षा में या फिर किसी डिबेट में महात्मा गांधी के ऊपर निबंध (Mahatma Gandhi Essay in Hindi) आता है। कई बार निबंध कम शब्दों का होता है तो कई बार ज्यादा शब्दों का। इसीलिए आज के इस लेख में हम आपको महात्मा गांधी का निबंध अलग-अलग शब्दों में बताएंगे। 

महात्मा गांधी पर निबंध 100 शब्दों में

महात्मा गांधी का जन्म 2 अक्टूबर 1879 को भारत के गुजरात राज्य में पोरबंदर गांव में हुआ था। इनके पिताजी का नाम करमचंद गांधी और माता का नाम पुतलीबाई था। महात्मा गांधी ना केवल एक महान स्वतंत्रता सेनानी थे बल्कि वह एक बहुत ही उत्कृष्ट व्यक्तित्व के मालिक थे। आज भारत में और दुनिया भर में लोग इन्हें उनकी महानता, सच्चाई, आदर्शवाद जैसी खूबियों की वजह से जानते हैं। इन्होंने भारत को आजाद कराने में बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। पर अफसोस की बात है कि 30 जनवरी 1948 को नाथूराम गोडसे ने गांधी जी को गोली मारकर उनकी हत्या कर दी थी। 

महात्मा गांधी पर निबंध 150 शब्दों में

भारत के गुजरात में जन्में महात्मा गांधी एक बहुत ही सच्चे और देशभक्त भारतीय थे। इसीलिए पूरे भारत के लिए 2 अक्टूबर 1869 का दिन बहुत ही यादगार है क्योंकि इस दिन मोहनदास करमचंद गांधी का जन्म हुआ था। महात्मा गांधी ने भारत को स्वतंत्र कराने के लिए ब्रिटिश शासन में एक बहुत ही ना भूलने वाली भूमिका निभाई थी। इनकी शिक्षा की बात की जाए तो इन्होंने पहले पोरबंदर से ही शिक्षा हासिल की थी। फिर बाद में गांधीजी उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैंड चले गए थे। 

इस तरह से इंग्लैंड में उन्होंने वकालत की पढ़ाई की और उसके बाद जब यह भारत लौटे तो उन्होंने भारत को अंग्रेजों के चंगुल से आजाद कराने के लिए सत्याग्रह आंदोलन चलाया। इसके अलावा भी गांधी जी ने और भी बहुत से आंदोलन चलाए थे। इसके चलते फिर 15 अगस्त 1947 को हमारे देश भारत को आजादी मिल गई थी। लेकिन बहुत अफसोस की बात है कि 30 अक्टूबर 1948 को गांधीजी की गोली लगने से मृत्यु हो गई थी। 

महात्मा गांधी पर निबंध 250 शब्दों में

महात्मा गांधी का पूरा नाम मोहनदास करमचंद गांधी है और इन्हें बापू के नाम से भी पुकारा जाता है। गांधी जी ने भारत को आजाद कराने के लिए बहुत से आंदोलन चलाए थे जिनके परिणामस्वरूप भारत को आजादी मिल सकी। बापू ने भारत में मैट्रिक तक की पढ़ाई की थी और उसके बाद वह आगे की पढ़ाई करने के लिए इंग्लैंड चले गए थे। इंग्लैंड से महात्मा गांधी जब वकील बन कर वापस भारत आए तो उन्होंने भारत की स्थिति को देखा। उन्होंने यह फैसला कर लिया कि वह अपने देश को अंग्रेजो की गुलामी से आजाद करवा कर रहेंगे। 

महात्मा गांधी बहुत ही बेहतरीन राष्ट्रवाद नेता थे जिन्होंने अहिंसा के मार्ग पर चलते हुए अंग्रेजों को भारत छोड़ने पर मजबूर कर दिया। बापू जी के इतने बड़े योगदान की वजह से ही उन्हें भारत के इतिहास में इतना ज्यादा महत्व दिया गया है। हर साल 2 अक्टूबर के दिन पूरे भारत में महात्मा गांधी का जन्मदिन बहुत बड़े पैमाने पर मनाया जाता है। यह दिन गांधी जयंती के नाम से प्रसिद्ध है।

सभी स्कूलों में और शिक्षा संस्थानों में बच्चों को विशेषतौर से महात्मा गांधी के जीवन से प्रेरित किया जाता है, ताकि वे भी उनके जैसे योग्य इंसान बन सकें। भारत देश को आजाद कराने वाले महान गांधी जी को नाथूराम गोडसे ने 30 जनवरी 1948 को गोली मार दी थी जिसकी वजह से बापू जी की मृत्यु हो गई थी। ऐसे महान व्यक्ति की मृत्यु होने पर पूरा देश बहुत ही ज्यादा सदमे में चला गया था। 

महात्मा गांधी पर निबंध 500 शब्दों में

मोहनदास करमचंद गांधी एक बहुत ही महान व्यक्ति थे जिनकी महानता से भारत के ही नहीं बल्कि विदेशों के लोग भी बहुत ज्यादा प्रेरित रहते थे। अगर इनके जन्म की बात की जाए तो देश के राष्ट्रपिता का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात में स्थित पोरबंदर में हुआ था। यह अपने पिता करमचंद गांधी और माता पुतलीबाई गांधी की चौथी और सबसे आखिरी संतान थे। 

गांधीजी की शुरुआती शिक्षा 

गांधीजी की शुरुआती शिक्षा उनके जन्म स्थान पोरबंदर में ही हुई थी। जानकारी के लिए बता दें कि महात्मा गांधी एक बहुत ही साधारण से विद्यार्थी थे और यह बहुत ही कम बोला करते थे। इन्होंने मैट्रिक की परीक्षा मुंबई यूनिवर्सिटी से की थी फिर बाद में यह उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए विदेश चले गए थे। वैसे तो गांधीजी का सपना डॉक्टर बनने का था लेकिन क्योंकि वो एक वैष्णव परिवार से संबंध रखते थे इसलिए उन्हें चीर-फाड़ करने की आज्ञा नहीं थी। इसलिए इन्होंने वकालत में अपनी शिक्षा पूरी की। 

गांधी जी का विवाह 

जिस समय गांधी जी की उम्र सिर्फ 13 साल की थी उस समय इनका विवाह कस्तूरबा देवी से कर दिया गया था जोकि पोरबंदर के एक व्यापारी की पुत्री थी। गांधीजी विवाह के समय स्कूल में पढ़ा करते थे। 

गांधीजी का राजनीति में प्रवेश 

जिस समय गांधी जी दक्षिण अफ्रीका में थे उस समय भारत में स्वतंत्रता आंदोलन की लहर चल रही थी। सन् 1915 की बात है जब गांधी जी भारत लौटे थे तो उस वक्त कांग्रेस पार्टी के सदस्य श्री गोपाल कृष्ण गोखले ने बापू से कांग्रेस पार्टी में शामिल होने के लिए कहा था। उसके बाद फिर गांधी जी ने कांग्रेस में अध्यक्षता प्राप्त करने के बाद पूरे भारत की भ्रमण यात्रा की। उसके बाद फिर गांधी जी ने पूरे देश की बागडोर को अपने हाथों में लेकर संपूर्ण देश में एक नए इतिहास की शुरुआत की। इसी दौरान जब 1928 में साइमन कमीशन भारत आया तो ऐसे में गांधी ने उसका खूब डटकर सामना किया। तरह से लोगों को बहुत ज्यादा प्रोत्साहन मिला और जब गांधी जी ने नमक आंदोलन और दांडी यात्रा निकाली तो उसकी वजह से अंग्रेज बुरी तरह से घबरा गए। 

महात्मा गांधी ने देश भर के लोगों को इस बात के लिए प्रेरित किया कि वे अपने स्वदेशी सामान को इस्तेमाल करें। बता दें कि गांधीजी ने जितने भी आंदोलन किए वे सभी आंदोलन अहिंसा से दूर थे। परंतु फिर भी उन्हें नमक आंदोलन की वजह से जेल तक भी जाना पड़ गया था। लेकिन गांधीजी ने अपना संघर्ष जारी रखा और अहिंसा के रास्ते पर चलते हुए उन्होंने आखिरकार 15 अगस्त 1947 को भारत को आजाद करवा लिया। 

गांधी जी की मृत्यु 

देश के बापू महात्मा गांधी की 30 जनवरी 1948 को बिरला भवन के बगीचे में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। बापू के सीने में नाथूराम विनायक गोडसे ने तीन गोलियां चलाई थी‌। मरते समय उनके मुंह से हे राम निकला था। इस तरह से 78 साल में देश के राष्ट्रपिता इस दुनिया को छोड़ कर चले गए। लेकिन उनके आदर्शों और उनकी बातों का आज भी लोग बहुत ज्यादा सम्मान करते हैं। 

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  • क्रांतिकारी महिलाओं के नाम
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दोस्तों यह थी हमारी आज की पोस्ट जिसमें हमने आपको महात्मा गांधी पर निबंध 100, 150, 250, 500 शब्दों में (Mahatma Gandhi Essay in Hindi) बताया। हमने महात्मा गांधी पर निबंध कम शब्दों में और अधिक शब्दों में बताया है जिससे कि आप अपनी जरूरत के अनुसार निबंध लिख सकें। हमें पूरी आशा है कि महात्मा गांधी पर निबंध आपके लिए अवश्य उपयोगी रहा होगा। अगर आपको यह जानकारी अच्छी लगी हो तो हमारे इस लेख को उन लोगों के साथ भी शेयर करें जो महात्मा गांधी पर निबंध ढूंढ रहे हैं। 

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  • Updated on  
  • सितम्बर 19, 2024

Mahatma Gandhi Essay in Hindi

Mahatma Gandhi Essay in Hindi : भारत के स्वतंत्रता सेनानी और बापू के तौर पर अपनी पहचान बनाने वाले मोहनदास करमचंद गांधी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात के पोरबंदर में हुआ था। गांधीजी को ‘बापू’ या ‘राष्ट्रपिता’ के नाम से भी जाना जाता है और वह भारत के एक महत्वपूर्ण नेता थे। वह सत्य और अहिंसा में विश्वास करते थे और चाहते थे कि हर व्यक्ति खुशी और शांति से एक साथ रहे। गांधी जी ‘सत्याग्रह’ नामक एक विशेष विचार लेकर आए। उन्होंने अंग्रेज़ों की गुलामी से भारत को आज़ाद कराने के लिए अपना पूरा जीवन दे दिया। स्वतंत्रता में योगदान और उनके बारे में बच्चों को जानकारी रहे इसलिए महात्मा गांधी पर निबंध (Mahatma Gandhi Essay in Hindi) लिखने के लिए स्कूल में दिया जाता है और कई परीक्षाओं में गांधी जी के बारे में पूछा भी जाता है। इसलिए आपकी मदद के लिए इस ब्लॉग में महात्मा गांधी पर निबंध लिखना सीख सकते हैं।

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महात्मा गांधी पर 100 शब्दों में निबंध इस प्रकार है –

मोहनदास करमचंद गांधी का जन्म 02 अक्टूबर 1869 गुजरात के पोरबंदर गांव में हुआ था। गांधीजी का भारत की स्वतंत्रता में अहम योगदान था। गांधीजी हमेशा अहिंसा के रास्ते पर चलते थे, वे लोगों से आशा करते थे कि वे भी अहिंसा का रास्ता अपनाएं। 1930 दांडी यात्रा करके नमक सत्याग्रह किया था। लोग गांधीजी को प्यार से बापू कहते हैं। गांधीजी ने अपनी वकालत की पढ़ाई लंदन से पूरी की थी। बापू हिंसा के खिलाफ थे और अंग्रेजों के लिए काफी बड़ी मुश्किल बने हुए थे। आजादी में बापू के योगदान के कारण उन्हें राष्ट्रपिता का ओहदा दिया गया। बापू हमेशा साधारण सा जीवन जीते थे, वे चरखा चलाकर कर सूत कातते थे और उसी से बनी धोती पहना करते थे।

महात्मा गांधी पर निबंध

यह भी पढ़ें – महात्मा गांधी के जीवन की घटनाएं, जो देती हैं आगे बढ़ने का संदेश और प्रेरणा

200 शब्दों में महात्मा गांधी पर निबंध इस प्रकार है –

2 अक्टूबर, 1869 को भारत के पोरबंदर में जन्में महात्मा गांधी का असली नाम मोहनदास करमचंद गांधी था। जिन्हें महात्मा , गांधी जी, महान आत्मा और कुछ लोगों द्वारा उन्हें बापू के नाम से जाना जाता है। महात्मा गांधी वह नेता थे जिन्होंने 200 से अधिक वर्षों से भारतीय जनता को ब्रिटिश उपनिवेशवाद की बेड़ियों से भारत को मुक्त कराया था। बचपन से वह सामान्य ही रहे थे और उस समय किसी ने अनुमान नहीं लगाया होगा कि लड़का देश में लाखों लोगों को एक कर देगा और दुनिया भर में लाखों लोगों का नेतृत्व करेगा।

दूसरी तरफ स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए संघर्ष से लेकर आज तक और आगे के लिए भी उनका नाम इतिहास के पन्नों पर दर्ज है। महात्मा गांधी को उनकी अहिंसक, अत्यधिक बौद्धिक और सुधारवादी विचारधाराओं के लिए जाना जाता है। महान व्यक्तित्वों में माने जाने वाले, भारतीय समाज में गांधी का कद बेजोड़ है क्योंकि उन्हें भारत के स्वतंत्रता संग्राम का नेतृत्व करने के उनके श्रमसाध्य प्रयासों के लिए ‘राष्ट्रपिता’ के रूप में जाना जाता है। गांधी जी की शिक्षा का विचार मुख्य रूप से चरित्र निर्माण, नैतिक मूल्यों, नैतिकता और मुक्त शिक्षा पर केंद्रित था। वह इस बात की वकालत करने वाले पहले लोगों में से थे कि शिक्षा को सभी के लिए मुफ्त और सभी के लिए सुलभ बनाया जाना चाहिए, चाहे वह किसी भी वर्ग का हो।

500 शब्दों में Mahatma Gandhi Essay in Hindi इस प्रकार है –

महात्मा गांधी, जिन्हें बापू और राष्ट्रपिता के रूप में जाना जाता है, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सबसे महत्वपूर्ण और प्रेरणादायक नेताओं में से एक थे। उनका पूरा नाम मोहनदास करमचंद गांधी था और उनका जन्म 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात के पोरबंदर में हुआ था। गांधी जी के पिता का नाम करमचंद उत्तमचंद गांधी था और वह राजकोट के दीवान रह चुके थे। गांधी जी की माता का नाम पुतलीबाई था और वह धर्मिक विचारों और नियमों का पालन करती थीं। कस्तूरबा गांधी उनकी पत्नी का नाम था वह उनसे 6 माह बड़ी थीं। कस्तूरबा और गांधी जी के पिता मित्र थे, इसलिए उन्होंने अपनी दोस्ती को रिश्तेदारी में बदल दी। कस्तूरबा गांधी ने हर आंदोलन में गांधी जी का सहयोग दिया था।

गांधी जी ने अपनी शिक्षा इंग्लैंड में पूरी की, जहां से उन्होंने कानून की पढ़ाई की। वकील बनने के बाद, वे दक्षिण अफ्रीका गए, जहां उन्होंने भारतीय समुदाय के खिलाफ हो रहे नस्लीय भेदभाव का सामना किया और उनके जीवन में सत्य और अहिंसा के सिद्धांतों का बीजारोपण हुआ।

दक्षिण अफ्रीका में रहते हुए, गांधी जी ने सत्याग्रह का मार्ग अपनाया और अन्याय के खिलाफ शांतिपूर्ण प्रतिरोध किया। उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों के अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ी और इस संघर्ष के दौरान उनके अंदर एक ऐसा नेतृत्व कौशल विकसित हुआ, जिसने उन्हें भारत के स्वतंत्रता संग्राम में एक प्रमुख नेता के रूप में स्थापित किया। 1915 में भारत लौटने के बाद, गांधी जी ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई और अंग्रेजी शासन के खिलाफ अनेक आंदोलनों का नेतृत्व किया।

महात्मा गांधी के नेतृत्व में असहयोग आंदोलन, नमक सत्याग्रह, और भारत छोड़ो आंदोलन जैसे महत्वपूर्ण आंदोलन हुए, जिनमें लाखों भारतीयों ने हिस्सा लिया और ब्रिटिश शासन के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद की। 1920 में जलियांवाला बाग हत्याकांड के बाद गांधी जी ने असहयोग आंदोलन की शुरुआत की, जिसमें लोगों से अपील की गई कि वे ब्रिटिश सरकार की नौकरियों, विदेशी वस्त्रों, और संस्थानों का बहिष्कार करें। इस आंदोलन ने ब्रिटिश सरकार को हिला कर रख दिया और भारतीयों के मन में स्वतंत्रता के प्रति जागरूकता पैदा की।

1930 में गांधी जी ने नमक सत्याग्रह का नेतृत्व किया, जिसे दांडी मार्च के नाम से भी जाना जाता है। यह आंदोलन ब्रिटिश सरकार के नमक कर के खिलाफ एक अहिंसक विरोध था। गांधी जी ने साबरमती आश्रम से दांडी गांव तक 24 दिनों का पैदल मार्च किया और वहां समुद्र से नमक बनाकर ब्रिटिश कानून का उल्लंघन किया। इस आंदोलन ने ब्रिटिश शासन की नींव को कमजोर कर दिया और यह स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण चरण बना।

गांधी जी का जीवन सादगी, आत्मसंयम, और मानवता की सेवा के लिए समर्पित था। वे समाज में व्याप्त छुआछूत और जातिगत भेदभाव के खिलाफ भी संघर्षरत रहे। उन्होंने दलितों के अधिकारों के लिए आवाज उठाई और समाज में समानता और समरसता की भावना को बढ़ावा दिया। 1932 में उन्होंने अखिल भारतीय छुआछूत विरोधी लीग की स्थापना की और छुआछूत विरोधी आंदोलन की शुरुआत की। उनका उद्देश्य समाज से अस्पृश्यता को समाप्त करना और दलितों को समान अधिकार दिलाना था।

महात्मा गांधी के नेतृत्व में हुए भारत छोड़ो आंदोलन ने ब्रिटिश शासन को यह संदेश दिया कि भारतीय अब और अधिक समय तक गुलामी में नहीं रह सकते। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान 8 अगस्त 1942 को गांधी जी ने “करो या मरो” का नारा देते हुए इस आंदोलन की शुरुआत की। इस आंदोलन ने स्वतंत्रता संग्राम के अंतिम चरण की शुरुआत की और 1947 में भारत को स्वतंत्रता प्राप्त हुई।

30 जनवरी 1948 को नाथूराम गोडसे ने महात्मा गांधी की हत्या कर दी, लेकिन उनके विचार और सिद्धांत आज भी दुनिया भर में प्रासंगिक हैं। गांधी जी ने हमें सत्य, अहिंसा, और सेवा का मार्ग दिखाया, जो आज भी हमें प्रेरणा देता है। उनकी जीवन यात्रा और उनके द्वारा किए गए संघर्ष, मानवता के इतिहास में एक उज्ज्वल अध्याय के रूप में सदैव याद किए जाएंगे।

यह भी पढ़ें – नाथूराम गोडसे ने महात्मा गांधी को क्यों मारा?

महात्मा गांधी पर निबंध 1000 शब्दों में

महात्मा गांधी पर निबंध 1000 शब्दों में इस प्रकार है –

देश की आजादी में मूलभूत भूमिका निभाने वाले तथा सभी को सत्य और अहिंसा का मार्ग दिखाने वाले महात्मा गाँधी को सर्वप्रथम बापू कहकर, राजवैद्य जीवराम कालिदास ने 1915 में संबोधित किया। आज दशकों बाद भी संसार उन्हें बापू के नाम से पुकारता है। उनके द्वारा अपनाई गई सादगी, आत्मसंयम और संघर्ष की राह ने न केवल भारत को स्वतंत्रता दिलाई, बल्कि पूरी दुनिया को भी अहिंसक संघर्ष के महत्व से अवगत कराया। गांधी जी ने भारतीय समाज को एक नई दिशा दी, जिसमें उन्होंने देश के हर वर्ग, जाति और धर्म के लोगों को एकजुट कर उनके भीतर आत्मनिर्भरता और स्वतंत्रता का भाव जागृत किया। उनकी विचारधारा और आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक अद्वितीय अध्याय के रूप में दर्ज हैं, जो आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बने रहेंगे।

महात्मा गांधी, जिनका पूरा नाम मोहनदास करमचंद गांधी था, एक महान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और अहिंसा के पुजारी थे। उनका जन्म 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात के पोरबंदर में हुआ था। गांधी जी ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में एक प्रमुख भूमिका निभाई और उन्हें “राष्ट्रपिता” के रूप में भी सम्मानित किया जाता है।

गांधी जी की शिक्षा इंग्लैंड में हुई, जहां से उन्होंने कानून की पढ़ाई की। वकील बनने के बाद वे दक्षिण अफ्रीका गए, जहां उन्होंने भारतीय समुदाय के खिलाफ हो रहे भेदभाव का सामना किया और यहीं से उनके जीवन में सत्य और अहिंसा के सिद्धांतों का बीजारोपण हुआ। दक्षिण अफ्रीका में 21 साल बिताने के बाद, गांधी जी भारत लौटे और ब्रिटिश शासन के खिलाफ विभिन्न आंदोलनों का नेतृत्व किया।

गांधी जी के नेतृत्व में कई महत्वपूर्ण आंदोलनों का आयोजन किया गया, जिनमें असहयोग आंदोलन, नमक सत्याग्रह और भारत छोड़ो आंदोलन प्रमुख हैं। उनकी नीतियों में सत्य, अहिंसा, स्वदेशी, और आत्मनिर्भरता का महत्व था। गांधी जी ने भारतीय समाज को जाति-भेद, छुआछूत, और सामाजिक अन्याय के खिलाफ जागरूक किया और स्वतंत्रता संग्राम को एक नैतिक आधार प्रदान किया।

1947 में भारत की स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भी गांधी जी ने सामाजिक समरसता और शांति की दिशा में काम जारी रखा। 30 जनवरी 1948 को नाथूराम गोडसे द्वारा उनकी हत्या कर दी गई, लेकिन उनके सिद्धांत और विचारधारा आज भी पूरी दुनिया में प्रेरणा का स्रोत हैं। गांधी जी का जीवन एक ऐसा मार्गदर्शक है, जो मानवता को सत्य, अहिंसा और न्याय के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है।

महात्मा गांधी, जिन्हें बापू के नाम से भी जाना जाता है, ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अद्वितीय योगदान दिया। उनके नेतृत्व में किए गए विभिन्न आंदोलनों ने न केवल भारत को स्वतंत्रता की दिशा में अग्रसर किया, बल्कि दुनिया को भी अहिंसा और सत्य के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी। महात्मा गांधी द्वारा किए गए ये आंदोलन न केवल भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महत्वपूर्ण अध्याय हैं, बल्कि वे दुनिया को सत्य और अहिंसा की ताकत का अहसास भी कराते हैं। गांधी जी के नेतृत्व में किए गए ये आंदोलन भारत की स्वतंत्रता की दिशा में महत्वपूर्ण कदम साबित हुए और आज भी उनकी शिक्षाएं और आदर्श मानवता के लिए प्रेरणा का स्रोत बने हुए हैं। यहां महात्मा गांधी द्वारा किए गए प्रमुख आंदोलनों का वर्णन किया गया है:

1. चंपारण सत्याग्रह (1917)

चंपारण सत्याग्रह महात्मा गांधी द्वारा भारत में किया गया पहला बड़ा आंदोलन था। यह बिहार के चंपारण जिले में हुआ, जहां ब्रिटिश ज़मींदार गरीब किसानों से जबरन नील की खेती करा रहे थे। इस अन्याय का सामना करने के लिए गांधी जी ने सत्याग्रह का मार्ग अपनाया, जिससे ब्रिटिश सरकार को नील की खेती के अत्याचार को समाप्त करने पर मजबूर होना पड़ा। यह आंदोलन भारतीय किसानों की पहली बड़ी जीत थी और गांधी जी के नेतृत्व को पूरे देश ने स्वीकारा।

2. असहयोग आंदोलन (1920-1922)

जलियांवाला बाग हत्याकांड के बाद, गांधी जी ने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ असहयोग आंदोलन की शुरुआत की। इस आंदोलन का उद्देश्य ब्रिटिश सरकार की नीतियों का विरोध करना और स्वराज की प्राप्ति करना था। गांधी जी ने लोगों से अपील की कि वे सरकारी नौकरियों, विदेशी वस्त्रों, और ब्रिटिश संस्थानों का बहिष्कार करें। लाखों भारतीयों ने इस आंदोलन में हिस्सा लिया, जिससे ब्रिटिश सरकार को भारी नुकसान हुआ। हालाँकि, चौरी चौरा कांड के बाद गांधी जी ने इस आंदोलन को वापस ले लिया, लेकिन इसने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण मोड़ लाया।

3. नमक सत्याग्रह (दांडी मार्च, 1930)

महात्मा गांधी द्वारा चलाया गया नमक सत्याग्रह , जिसे दांडी मार्च के नाम से भी जाना जाता है, ब्रिटिश सरकार के नमक कर के खिलाफ एक अहिंसक विरोध था। 12 मार्च 1930 को गांधी जी ने साबरमती आश्रम से दांडी गांव तक 24 दिनों का पैदल मार्च किया और वहां समुद्र से नमक बनाकर ब्रिटिश कानून का उल्लंघन किया। इस आंदोलन ने ब्रिटिश शासन की जड़ें हिला दीं और यह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण पड़ाव बना।

4. दलित आंदोलन (1932)

महात्मा गांधी ने दलितों के अधिकारों के लिए भी संघर्ष किया। 1932 में उन्होंने अखिल भारतीय छुआछूत विरोधी लीग की स्थापना की और छुआछूत विरोधी आंदोलन की शुरुआत की। उनका उद्देश्य समाज से अस्पृश्यता को समाप्त करना और दलितों को समान अधिकार दिलाना था। इसके लिए उन्होंने उपवास और सत्याग्रह का सहारा लिया, जिससे भारतीय समाज में जागरूकता आई और दलितों के उत्थान के लिए कई सुधार किए गए।

5. भारत छोड़ो आंदोलन (1942)

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान महात्मा गांधी ने भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत की, जिसका नारा था “करो या मरो”। इस आंदोलन का उद्देश्य भारत को ब्रिटिश शासन से तत्काल स्वतंत्रता दिलाना था। गांधी जी के इस आह्वान पर पूरे देश में लाखों लोगों ने अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन किया। इस आंदोलन ने ब्रिटिश सरकार को समझा दिया कि अब भारतीयों को अधिक समय तक गुलाम नहीं रखा जा सकता, और इसके बाद ही स्वतंत्रता के लिए अंतिम चरण की तैयारियां शुरू हुईं।

महात्मा गांधी के शब्दों में “कुछ ऐसा जीवन जियो जैसे की तुम कल मरने वाले हो, कुछ ऐसा सीखो जिससे कि तुम हमेशा के लिए जीने वाले”। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी इन्हीं सिद्धान्तों पर जीवन व्यतीत करते हुए भारत की आजादी के लिए ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ अनेक आंदोलन लड़े और भारत को आज़ादी दिलाई।

यह भी पढ़ें – महात्मा गांधी के सत्याग्रह पर निबंध

महात्मा गांधी पर निबंध लिखना एक व्यावहारिक अनुभव हो सकता है क्योंकि इतिहास, राजनीति और दर्शन पर उनका गहरा प्रभाव है। एक अच्छी तरह से संरचित निबंध बनाने के लिए भारत के स्वतंत्रता संग्राम में उनकी भूमिका, अहिंसा (अहिंसा) और सत्य (सत्याग्रह) का उनका दर्शन, दुनिया भर में नागरिक अधिकार आंदोलनों पर उनका प्रभाव, उनका निजी जीवन और आध्यात्मिकता और नैतिक मूल्य के आधार पर लिख सकते हैं।

महात्मा गांधी पर निबंध 1000 शब्दों में PDF Download

गांधी के अनमोल विचार (Gandhi Quotes in Hindi) जिन्हें आप अपने निबंध में शामिल कर सकते हैं –

आजादी का कोई अर्थ नहीं है यदि इसमें गलतियां करने की आजादी शामिल न हों। -महात्मा गांधी

डर शरीर का रोग नहीं है, यह आत्मा को मारता है। -महात्मा गांधी

उफनते तूफ़ान को मात देना है तो अधिक जोखिम उठाते हुए हमें पूरी शक्ति के साथ आगे बढ़ना होगा। -महात्मा गांधी

ऐसे जिएं कि जैसे आपको कल मरना है और सीखें ऐसे जैसे आपको हमेशा जीवित रहना है । -महात्मा गांधी

आंख के बदले आंख पूरे विश्व को अंधा बना देगी। -महात्मा गांधी

यह भी पढ़ें – महात्मा गाँधी के अनमोल विचार

महात्मा गांधी के बारे में कुछ रोचक तथ्य यहां दिए हैं, जिसके बारे में Mahatma Gandhi Essay in Hindi लिखते समय विचार कर सकते हैं –

  • महात्मा गांधी की मातृ-भाषा गुजराती थी।
  • महात्मा गांधी ने राजकोट के अल्फ्रेड हाई स्कूल से पढ़ाई की थी।
  • महात्मा गांधी के जन्मदिन 2 अक्टूबर को ही अंतरराष्ट्रीय अंहिसा दिवस के रूप मे विश्वभर में मनाया जाता है।
  • वह अपने माता-पिता के सबसे छोटी संतान थे उनके दो भाई और एक बहन थी।
  • माधव देसाई, गांधी जी के निजी सचिव थे।
  • महात्मा गांधी की हत्या बिरला भवन के बगीचे में हुई थी।
  • महात्मा गांधी और प्रसिद्ध लेखक लियो टॉलस्टॉय के बीच लगातार पत्र व्यवहार होता था।
  • महात्मा गांधी ने दक्षिण अफ्रीका के सत्याग्रह संघर्ष के दोरान, जोहांसबर्ग से 21 मील दूर एक 1100 एकड़ की छोटी सी कालोनी, टॉलस्टॉय फार्म स्थापित की थी।
  • महात्मा गांधी का जन्म शुक्रवार को हुआ था, भारत को स्वतंत्रता भी शुक्रवार को ही मिली थी तथा महात्मा गांधी की हत्या भी शुक्रवार को ही हुई थी।
  • महात्मा गांधी के पास नकली दांतों का एक सेट हमेशा मौजूद रहता था।

यह भी पढ़ें – जानें भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ‘बापू’ से जुड़े कुछ रोचक तथ्य

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सादा जीवन, उच्च विचार।

महात्मा गांधी जी को भारत में राष्ट्रपिता के रूप में सम्मानित किया जाता है। स्वतंत्र भारत के संविधान द्वारा महात्मा को राष्ट्रपिता की उपाधि प्रदान किए जाने से बहुत पहले, नेताजी सुभाष चंद्र बोस ही थे।

गांधी की मां पुतलीबाई अत्यधिक धार्मिक थीं। उनकी दिनचर्या घर और मंदिर में बंटी हुई थी। वह नियमित रूप से उपवास रखती थीं और परिवार में किसी के बीमार पड़ने पर उसकी सेवा सुश्रुषा में दिन-रात एक कर देती थीं।

गाँधी का मत था स्वराज का अर्थ है जनप्रतिनिधियों द्वारा संचालित ऐसी व्यवस्था जो जन-आवश्यकताओं तथा जन-आकांक्षाओं के अनुरूप हो।

इसका सूत्रपात सर्वप्रथम महात्मा गांधी ने 1894 ई. में दक्षिण अफ़्रीका में किया था।

महात्मा गांधी, मोहनदास करमचंद गांधी के नाम से, (जन्म 2 अक्टूबर, 1869, पोरबंदर, भारत- मृत्यु 30 जनवरी, 1948, दिल्ली), भारतीय वकील, राजनीतिज्ञ, सामाजिक कार्यकर्ता, और लेखक जो अंग्रेजों के खिलाफ राष्ट्रवादी आंदोलन के नेता बने।

महात्मा गांधी

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रश्मि पटेल विविध एजुकेशनल बैकग्राउंड रखने वाली एक पैशनेट राइटर और एडिटर हैं। उनके पास Diploma in Computer Science और BA in Public Administration and Sociology की डिग्री है, जिसका ज्ञान उन्हें UPSC व अन्य ब्लॉग लिखने और एडिट करने में मदद करता है। वर्तमान में, वह हिंदी साहित्य में अपनी दूसरी बैचलर की डिग्री हासिल कर रही हैं, जो भाषा और इसकी समृद्ध साहित्यिक परंपरा के प्रति उनके प्रेम से प्रेरित है। लीवरेज एडु में एडिटर के रूप में 2 साल से ज़्यादा अनुभव के साथ, रश्मि ने छात्रों को मूल्यवान मार्गदर्शन प्रदान करने में अपनी स्किल्स को निखारा है। उन्होंने छात्रों के प्रश्नों को संबोधित करते हुए 1000 से अधिक ब्लॉग लिखे हैं और 2000 से अधिक ब्लॉग को एडिट किया है। रश्मि ने कक्षा 1 से ले कर PhD विद्यार्थियों तक के लिए ब्लॉग लिखे हैं जिन में उन्होंने कोर्स चयन से ले कर एग्जाम प्रिपरेशन, कॉलेज सिलेक्शन, छात्र जीवन से जुड़े मुद्दे, एजुकेशन लोन्स और अन्य कई मुद्दों पर बात की है। Leverage Edu पर उनके ब्लॉग 50 लाख से भी ज़्यादा बार पढ़े जा चुके हैं। रश्मि को नए SEO टूल की खोज व उनका उपयोग करने और लेटेस्ट ट्रेंड्स के साथ अपडेट रहने में गहरी रुचि है। लेखन और संगठन के अलावा, रश्मि पटेल की प्राथमिक रुचि किताबें पढ़ना, कविता लिखना, शब्दों की सुंदरता की सराहना करना है।

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महात्मा गाँधी

महात्मा गाँधी एक ऐसा नाम जिसे सुनते ही सत्य और अहिंसा का स्मरण होता है। एक ऐसा व्यक्तित्व जिन्होंने किसी दूसरे को सलाह देने से पहले उसका प्रयोग स्वंय पर किया। जिन्होंने बड़ी से बड़ी मुसीबत में भी अहिंसा का मार्ग नहीं छोङा। महात्मा गाँधी महान व्यक्तित्व के राजनैतिक नेता थे। इन्होंने भारत की स्वतंत्रता में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया था। गाँधी जी सादा जीवन उच्च विचार के समर्थक थे, और इसे वे पूरी तरह अपने जीवन में लागू भी करते थे। उनके सम्पूर्णं जीवन में उनके इसी विचार की छवि प्रतिबिम्बित होती है। यहीं कारण है कि उन्हें 1944 में नेताजी सुभाष चन्द्र ने राष्ट्रपिता कहकर सम्बोधित किया था।

महात्मा गाँधी से संबंधित तथ्य:

पूरा नाम – मोहनदास करमचन्द गाँधी अन्य नाम – बापू, महात्मा, राष्ट्र-पिता जन्म-तिथि व स्थान – 2 अक्टूबर 1869, पोरबन्दर (गुजरात) माता-पिता का नाम – पुतलीबाई, करमचंद गाँधी पत्नी – कस्तूरबा गाँधी शिक्षा – 1887 मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण की,

  • विद्यालय – बंबई यूनिवर्सिटी, सामलदास कॉलेज
  • इंग्लैण्ड यात्रा – 1888-91, बैरिस्टर की पढाई, लंदन युनिवर्सिटी

बच्चों के नाम (संतान) – हरीलाल, मणिलाल, रामदास, देवदास प्रसिद्धि का कारण – भारतीय स्वतंत्रता संग्राम राजनैतिक पार्टी – भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस स्मारक – राजघाट, बिरला हाऊस (दिल्ली) मृत्यु – 30 जनवरी 1948, नई दिल्ली मृत्यु का कारण – हत्या

महात्मा गाँधी की जीवनी (जीवन-परिचय)

महात्मा गाँधी (2 अक्टूबर 1869 – 30 जनवरी 1948)

जन्म, जन्म-स्थान व प्रारम्भिक जीवन

महात्मा गाँधी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को पोरबन्दर, गुजरात में करमचंद गाँधी के घर पर हुआ था। यह स्थान (पोरबंदर) पश्चिमी भारत में गुजरात राज्य का एक तटीय शहर है। ये अपनी माता पुतलीबाई के अन्तिम संतान थे, जो करमचंद गाँधी की चौथी पत्नी थी। करमचंद गाँधी की पहली तीन पत्नियों की मृत्यु प्रसव के दौरान हो गई थी। ब्रिटिश शासन के दौरान इनके पिता पहले पोरबंदर और बाद में क्रमशः राजकोट व बांकानेर के दीवान रहें।

महात्मा गाँधी जी का असली नाम मोहनदास था और इनके पिता का नाम करमचंद गाँधी। इसी कारण इनका नाम पूरा नाम मोहन दास करमचंद गाँधी पङा। ये अपने तीन भाईयों में सबसे छोटे थे। इनकी माता पुतलीबाई, बहुत ही धार्मिक महिला थी, जिस का गाँधी जी के व्यक्तित्व पर गहरा प्रभाव पङा। जिसे उन्होंने स्वंय पुणे की यरवदा जेल में अपने मित्र और सचिव महादेव देसाई को कहा था, ‘‘तुम्हें मेरे अंदर जो भी शुद्धता दिखाई देती हो वह मैंने अपने पिता से नहीं, अपनी माता से पाई है…उन्होंने मेरे मन पर जो एकमात्र प्रभाव छोड़ा वह साधुता का प्रभाव था।’’

गाँधी जी का पालन-पोषण वैष्णव मत को मानने वाले परिवार में हुआ, और उनके जीवन पर भारतीय जैन धर्म का गहरा प्रभाव पङा। यही कारण है कि वे सत्य और अहिंसा में बहुत विश्वास करते थे और उनका अनुसरण अपने पूरे जीवन काल में किया।

गाँधी जी का विवाह (शादी)/ गाँधी जी का वैवाहिक जीवन

गाँधी जी की शादी सन् 1883, मई में 13 वर्ष की आयु पूरी करते ही 14 साल की कस्तूरबा माखन जी से हुई। गाँधी जी ने इनका नाम छोटा करके कस्तूरबा रख दिया और बाद में लोग उन्हें प्यार से बा कहने लगे। कस्तूरबा गाँधी जी के पिता एक धनी व्यवसायी थे। कस्तूरबा गाँधी शादी से पहले तक अनपढ़ थीं। शादी के बाद गाँधीजी ने उन्हें लिखना एवं पढ़ना सिखाया। ये एक आदर्श पत्नी थी और गाँधी जी के हर कार्य में दृढता से उनके साथ खङी रही। इन्होंने गाँधी जी के सभी कार्यों में उनका साथ दिया।

1885 में गाँधी जी जब 15 साल के थे तब इनकी पहली संतान ने जन्म लिया। लेकिन वह कुछ ही समय जीवित रहीं। इसी वर्ष इनके पिताजी करमचंद गाँधी की भी मृत्यु हो गयी। गाँधी जी के 4 सन्तानें थी और सभी पुत्र थे:- हरीलाल गाँधी (1888), मणिलाल गाँधी (1892), रामदास गाँधी (1897) और देवदास गाँधी (1900)।

गाँधी जी की शिक्षा- दीक्षा

प्रारम्भिक शिक्षा

गाँधी जी की प्रारम्भिक शिक्षा पोरबंदर में हुई थी। पोरबंदर से उन्होंने मिडिल स्कूल तक की शिक्षा प्राप्त की। इनके पिता की बदली राजकोट होने के कारण गाँधी जी की आगे की शिक्षा राजकोट में हुई। गाँधी जी अपने विद्यार्थी जीवन में सर्वश्रेष्ठ स्तर के विद्यार्थी नहीं थे। इनकी पढाई में कोई विशेष रुचि नहीं थी। हालांकि गाँधी जी एक एक औसत दर्जें के विद्यार्थी रहे, किन्तु किसी किसी प्रतियोगिता और खेल में उन्होंने पुरुस्कार और छात्रवृतियॉ भी जीती। 21 जनवरी 1879 में राजकोट के एक स्थानीय स्कूल में दाखिला लिया। यहाँ उन्होंने अंकगणित, इतिहास और गुजराती भाषा का अध्यन किया।

साल 1887 में जैसे-तैसे उन्होंने राजकोट हाई स्कूल से मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की और आगे की पढ़ाई के लिये भावनगर के सामलदास कॉलेज में प्रवेश लिया। घर से दूर रहने के कारण वे पर अपना ध्यान केन्द्रित नहीं कर पाये और अस्वस्थ होकर पोरबंदर वापस लौट आये। यदि आगे की पढ़ाई का निर्णय गाँधी जी पर छोड़ा जाता तो वह डॉक्टरी की पढ़ाई करके डॉक्टर बनना चाहते थे, किन्तु उन्हें घर से इसकी अनुमति नहीं मिली।

इंग्लैण्ड में उच्च स्तर की पढाई

गाँधी जी के पिता की मृत्यु के बाद उनके परिवार के एक करीबी मित्र भावजी दवे ने उन्हें वकालत करने की सलाह दी और कहा कि बैरिस्टर की पढ़ाई करने के बाद उन्हें अपने पिता का उत्तराधिकारी होने के कारण उनका दीवानी का पद मिल जायेगा।

उनकी माता पुतलीबाई और परिवार के कुछ सदस्यों ने उनके विदेश जाने के फैसले का विरोध किया, किन्तु गाँधी जी ने अपनी माँ से वादा किया कि वे शाकाहारी भोजन करेगें। इस प्रकार अपनी माँ को आश्वस्त करने के बाद उन्हें इंग्लैण्ड जाने की आज्ञा मिली।

4 सितम्बर 1888 को गाँधी जी इंग्लैण्ड के लिये रवाना हुये। यहाँ आने के बाद इन्होंने पढ़ाई को गम्भीरता से लिया और मन लगाकर अध्ययन करने लगे। हालांकि, इंग्लैण्ड में गाँधी जी का शुरुआती जीवन परेशानियों से भरा हुआ था। उन्हें अपने खान-पान और पहनावे के कारण कई बार शर्मिदा भी होना पड़ा। किन्तु उन्होंने हर एक परिस्थिति में अपनी माँ को दिये वचन का पालन किया।

बाद में इन्होंने लंदन शाकाहारी समाज (लंदन वेजीटेरियन सोसायटी) की सदस्यता ग्रहण की और इसके कार्यकारी सदस्य बन गये। यहाँ इनकी मुलाकात थियोसोफिकल सोसायटी के कुछ लोगों से हुई जिन्होंने गाँधी जी को भगवत् गीता पढ़ने को दी। गाँधी जी लंदन वेजीटेरियन सोसायटी के सम्मेलनों में भाग लेने लगे और उसकी पत्रिका में लेख लिखने लगे। यहाँ तीन वर्षों (1888-1891) तक रहकर अपनी बैरिस्टरी की पढ़ाई पूरी की और 1891 में ये भारत लौट आये।

गाँधी जी का 1891-1893 तक का समय

1891 में जब गाँधी जी भारत लौटकर आये तो उन्हें अपनी माँ की मृत्यु का दुखद समाचार प्राप्त हुआ। उन्हें यह जानकर बहुत निराशा हुई कि वकालत एक स्थिर व्यवसायी जीवन का आधार नहीं है। गाँधी जी ने बंबई जाकर वकालत का अभ्यास किया किन्तु स्वंय को स्थापित नहीं कर पाये और वापस राजकोट आ गये। यहाँ इन्होंने लागों की अर्जियाँ लिखने का कार्य शुरु कर दिया। एक ब्रिटिश अधिकारी को नाराज कर देने के कारण इनका यह काम भी बन्द हो गया।

गाँधी जी की अफ्रीका यात्रा

एक वर्ष के कानून के असफल अभ्यास के बाद, गाँधी जी ने दक्षिण अफ्रीका के व्यापारी दादा अब्दुला का कानूनी सलाहकार बनने का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। 1883 में गाँधी जी ने अफ्रीका (डरबन) के लिये प्रस्थान किया। इस यात्रा और वहाँ के अनुभवों ने गाँधी जी के जीवन को एक महत्वपूर्ण मोङ दिया। इस यात्रा के दौरान गाँधी जी को भारतियों के साथ हो रहें भेदभाव को देखा।

ऐसी कुछ घटनाऐं उनके साथ घटित हुई जिससे उन्हें भारतियों और अश्वेतों के साथ हो रहे अत्याचारों का अनुभव हुआ जैसे: 31 मई 1883 को प्रिटोरिया जाने के दौरान प्रथम श्रेणी की टिकट के बावजूद उन्हें एक श्वेत अधिकारी ने गाडी से धक्का दे दिया और उन्होंने ठिठुरते हुये रात बिताई क्योंकि वे किसी से पुनः अपमानित होने के डर से कुछ पूछ नहीं सकते थे, एक अन्य घटना में एक घोङा चालक ने उन्हें पीटा क्योंकि उन्होंने एक श्वेत अंग्रेज को सीट देकर पायदान पर बैठकर यात्रा करने से इंकार कर दिया था, यूरोपियों के लिये सुरक्षित होटलों पर जाने से रोक आदि कुछ ऐसी घटनाऐं थी जिन्होंने गाँधी जी के जीवन का रुख ही बदल दिया।

नटाल (अफ्रीका) में भारतीय व्यापारियों और श्रमिकों के लिये यह अपमान आम बात थी और गाँधी जी के लिये एक नया अनुभव। यहीं से गाँधी जी के जीवन में एक नये अध्याय की शुरुआत हुई। गाँधी जी ने सोचा कि यहाँ से भारत वापस लौटना कायरता होगी अतः वहीं रह कर इस अन्याय का विरोध करने का निश्चय किया। इस संकल्प के बाद वे अगले 20 वर्षों (1893-1894) तक दक्षिण अफ्रीका में ही रहें और भारतियों के अधिकारों और सम्मान के लिये संघर्ष किया।

दक्षिण अफ्रीका में संघर्ष का प्रथम चरण (1884-1904) –

  • संघर्ष के इस प्रथम चरण के दौरान गाँधी जी की राजनैतिक गतिविधियाँ नरम रही। इस दौरान उन्होंने केवल सरकार को अपनी समस्याओं और कार्यों से संबंधित याचिकाएँ भेजते थे।
  • भारतियों को एक सूत्र में बाँधने के लिये 22 अगस्त 1894 में “नेटाल भारतीय काग्रेंस का” गठन किया।
  • “इण्डियन ओपिनियन” नामक अखबार के प्रकाशन की प्रक्रिया शुरु की।
  • इस संघर्ष को व्यापारियों और वकीलों के आन्दोलन के नाम से जाना जाता है।

संघर्ष का दूसरा चरण –

  • अफ्रीका में संघर्ष के दूसरे चरण की शुरुआत 1906 में हुई।
  • इस समय उपनिवेशों की राजनीतिक स्थिति में परिवर्तन हो चुका था, तो गाँधी जी ने नये स्तर से आन्दोलन को प्रारम्भ किया। यहीं से मूल गाँधीवादी प्राणाली की शुरुआत मानी जाती है।
  • 30 मई 1910 में जोहान्सवर्ग में टाल्सटाय और फिनिक्स सेंटमेंट की स्थापना।
  • काग्रेंस के कार्यकर्ताओं को अहिंसा और सत्याग्रह का प्रशिक्षण।

महात्मा गाँधी का भारत आगमन

1915 में 46 वर्ष की उम्र में गाँधी जी भारत लौट आये, और भारत की स्थिति का सूक्ष्म अध्ययन किया। गोपाल कृष्ण गोखले (गाँधी जी के राजनीतिक गुरु) की सलाह पर गाँधी जी नें एक वर्ष शान्तिपूर्ण बिना किसी आन्दोलन के व्यतीत किया। इस समय में उन्होंने भारत की वास्तविक स्थिति से रूबरू होने के लिये पूरे भारत का भ्रमण किया। 1916 में गाँधी जी नें अहमदाबाद में साबरमती आश्रम की स्थापना की। फरवरी 1916 में गाँधी जी ने पहली बार बनारस हिन्दू विश्व विद्यालय में मंच पर भाषण दिया। जिसकी चर्चा पूरे भारत में हुई।

भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में सक्रिय भूमिका

चम्पारण और खेडा आन्दोलन (1917-1918)

साल 1917 में बिहार के चम्पारण जिले में रहने वाले किसानों के हक के लिये गाँधी जी ने आन्दोलन किया। यह गाँधी जी का भारत में प्रथम सक्रिय आन्दोलन था, जिसनें गाँधी जी को पहली राजनैतिक सफलता दिलाई। इस आन्दोलन में उन्होंने अहिंसात्मक सत्याग्रह को अपना हथियार बनाया और इस प्रयोग में प्रत्याशित सफलता भी अर्जित की।

19 वीं शताब्दी के अन्त में गुजरात के खेड़ा जिले के किसान अकाल पड़ने के कारण असहाय हो गये और उस समय उपभोग की वस्तुओं के भी दाम बहुत बढ़ गये थे। ऐसे में किसान करों का भुगतान करने में बिल्कुल असमर्थ थे। इस मामले को गाँधी जी ने अपने हाथ में लिया और सर्वेंट ऑफ इण्डिया सोसायटी के सदस्यों के साथ पूरी जाँच-पड़ताल के बाद अंग्रेज सरकार से बात की और कहा कि जो किसान लगान देने की स्थिति में है वे स्वतः ही दे देंगे बशर्तें सरकार गरीब किसानों का लगान माफ कर दें। ब्रिटिश सरकार ने यह प्रस्ताव मान लिया और गरीब किसानों का लगान माफ कर दिया।

1918 में अहमदाबाद मिल मजदूरों के हक के लिये भूख हङताल

1918 में अहमदाबाद के मिल मालिक कीमत बढने के बाद भी 1917 से दिये जाने वाले बोनस को कम बंद कर करना चाहते थे। मजदूरों ने माँग की बोनस के स्थान पर मजदूरी में 35% की वृद्धि की जाये, जबकि मिल मालिक 20% से अधिक वृद्धि करना नहीं चाहते थे। गाँधी जी ने इस मामले को सौंपने की माँग की। किन्तु मिल मालिकों ने वादा खिलाफी करते हुये 20% वृद्धि की। जिसके खिलाफ गाँधी जी नें पहली बार भूख हङताल की। यह इस हङताल की सबसे खास बात थी। भूख हङताल के कारण मिल मालिकों को मजदूरों की माँग माननी पङी।

इन आन्दोलनों ने गँधी जी को जनप्रिय नेता तथा भारतीय राजनीति के प्रमुख स्तम्भ के रुप में स्थापित कर दिया।

खिलाफत आन्दोलन (1919-1924)

तुर्की के खलीफा के पद की दोबारा स्थापना करने के लिये देश भर में मुसलमानों द्वारा चलाया गया आन्दोलन था। यह एक राजनीतिक-धार्मिक आन्दोलन था, जो अंग्रेजों पर दबाव डालने के लिये चलाया गया था। गाँधी जी ने इस आन्दोलन का समर्थन किया। इस आन्दोलन का समर्थन करने का मुख्य उद्देश्य स्वतंत्रता आन्दोलन में मुसलिमों का सहयोग प्राप्त करना था।

असहयोग आन्दोलन (1919-1920)

प्रथम विश्व युद्ध (1914-1918) के दौरान प्रेस पर लगे प्रतिबंधों और बिना जाँच के गिरफ्तारी वे आदेश को सर सिडनी रोलेट की अध्यक्षता वाली समिति ने इन कडे नियमों को जारी रखा। जिसे रोलेट एक्ट के नाम से जाना गया। जिसका पूरे भारत में व्यापक स्तर पर विरोध हुआ। उस विरोधी आन्दोलन को असहयोग आन्दोलन का नाम दिया गया। असहयोग आन्दोलन के जन्म का मुख्य कारण रोलट एक्ट और जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड (1919) था।

गाँघी जी अध्यक्षता में 30 मार्च 1919 और 6 अप्रैल 1919 को देश व्यापी हङताल का आयोजन किया गया। चारों तरफ देखते ही देखते सभी सरकारी कार्य ठप्प हो गये। अंग्रेज अधिकारी इस असहयोग के हथियार के आगे बेवस हो गये। 1920 में गाँधी जी कांग्रेस के अध्यक्ष बने और इस आन्दोलन में भाग लेने के लिये भारतीय जनमानस को प्रेरित किया। गाँधी जी की प्रेरणा से प्रेरित होकर प्रत्येक भारतीय ने इसमें बढ-चढ कर भाग लिया।

इस आन्दोलन को और अधिक प्रभावी करने के लिये और हिन्दू- मुसलिम एकता को मजबूती देने के उद्देश्य से गाँधी जी ने असहयोग आन्दोलन को खिलाफत आन्दोलन से जोङ दिया।

सरकारी आकडों के अनुसार साल 1921 में 396 हडतालें आयोजित की गयी जिसमें 6 लाख श्रमिकों ने भाग लिया था और इस दौरान लगभग 70 लाख कार्यदिवसों का नुकसान हुआ था। विद्यार्थियों ने सरकारी स्कूलों और कालेजों में जाना बन्द कर दिया, वकीलों ने वकालात करने से मना कर दिया और श्रमिक वर्ग हङताल पर चला गया। इस प्रकार प्रत्येक भारतीय नागरिक ने अपने अपने ढंग से गाँधी जी के इस आन्दोलन को सफल बनाने में सहयोग किया। 1857 की क्रान्ति के बाद यह सबसे बङा आन्दोलन था जिसने भारत में ब्रिटिश शासन के अस्तित्व को खतरें में डाल दिया था।

चौरी-चौरा काण्ड (1922)

1922 तक आते आते यह देश का सबसे बङा आन्दोलन बन गया था। एक हङताल की शान्तिपूर्ण विरोध रैली के दौरान यह अचानक हिंसात्मक रुप में परिणित हो गया। विरोध रैली के दौरान पुलिस द्वारा प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार करके जेल में डालने से भीङ आक्रोशित हो गयी। और किसानों के एक समूह ने फरवरी 1922 में चौरी-चौरा नामक पुलिस स्टेशन में आग लगा दी। इस घटना में कई निहत्थे पुलिसकर्मियों की मृत्यु हो गयी।

इस घटना से गाँधी जी बहुत आहत हुये और उन्होंने इस आन्दोलन को वापस ले लिया। गांधी जी ने यंग इण्डिया में लिखा था कि, “आन्दोलन को हिंसक होने से बचाने के लिए मैं हर एक अपमान, हर एक यातनापूर्ण बहिष्कार, यहाँ तक की मौत भी सहने को तैयार हूँ।”

सविनय अवज्ञा आन्दोलन (12 मार्च 1930)

इस आनदोलन का उद्देश्य पूर्ण स्वाधीनता प्राप्त करना था। गाँधी जी और अन्य अग्रणी नेताओं को अंग्रेजों के इरादों पर शक होने लगा था कि वे अपनी औपनिवेशिक स्वराज्य प्रदान करने की घोषणा को पूरी करेगें भी या नहीं। गाँधी जी ने अपनी इसी माँग का दबाव अंग्रेजी सरकार पर डालने के लिये 6 अप्रैल 1930 को एक और आन्दोलन का नेतृत्व किया जिसे सविनय अवज्ञा आन्दोलन के नाम से जाना जाता है।

इसे दांङी मार्च या नमक कानून भी कहा जाता है। यह दांङी मार्च गाँधी जी ने साबरमती आश्रम से निकाली। इस आन्दोलन का उद्देश्य सामूहिक रुप से कुछ विशिष्ट गैर-कानूनी कार्यों को करके सरकार को झुकाना था। इस आन्दोलन की प्रबलता को देखते हुये सरकार ने तत्कालीन वायसराय लॉर्ड इरविन को समझौते के लिये भेजा। गाँधी जी ने यह समझौता स्वीकार कर लिया और आन्दोलन वापस ले लिया।

भारत छोडो आन्दोलन (अगस्त 1942)

क्रिप्श मिशन की विफलता के बाद गाँधी जी ने अंग्रेजों के खिलाफ अपना तीसरा बङा आन्दोलन छेङने का निर्णय लिया। इस आन्दोलन का उद्देश्य तुरन्त स्वतंत्रता प्राप्त करना था। 8 अगस्त 1942 काग्रेंस के बम्बई अधिवेशन में अंग्रेजों भारत छोङों का नारा दिया गया और 9 अगस्त 1942 को गाँधी जी के कहने पर पूरा देश आन्दोलन में शामिल हो गया। ब्रिटिश सरकार ने इस आन्दोलन के खिलाफ काफी सख्त रवैया अपनाया। इस आन्दोलन को दबाने में सरकार को एक वर्ष से अधिक समय लगा।

भारत का विभाजन और आजादी

अंग्रेजों ने जाते जाते भी भारत को दो टुकङों में बाँट दिया। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अंग्रेजों की स्थिति बहुत कमजोर हो गयी थी। उन्होंने भारत को आजाद करने के संकेत दे दिये थे। भारत की आजादी के साथ ही जिन्ना के नेतृत्व में एक अलग राज्य पाकिस्तान की भी माँग होने लगी। गाँधी जी देश का बँटवारा नहीं होने देना चाहते थे। किन्तु उस समय परिस्थितियों के प्रतिकूल होने के कारण देश दो भागों में बँट गया।

महात्मा गाँधी की मृत्यु (30 जनवरी 1948)

नाथूराम गोडसे और उनके सहयोगी गोपालदास ने 30 जनवरी 1948 को शाम 5 बजकर 17 मिनट पर बिरला हाउस में गाँधी जी की गोली मारकर हत्या कर दी। जवाहर लाल नेहरु ने गाँधी जी की हत्या की सूचना इन शब्दों में दी, ‘हमारे जीवन से प्रकाश चला गया और आज चारों तरफ़ अंधकार छा गया है। मैं नहीं जानता कि मैं आपको क्या बताऊँ और कैसे बताऊँ। हमारे प्यारे नेता, राष्ट्रपिता बापू अब नहीं रहे।’

गाँधी जी का जीवन-चक्र (टाईम-लाइन) एक नजर मेः-

1879 – जन्म – 2 अक्टूबर, पोरबंदर (गुजरात)।

1876 – गाँधी जी के पिता करमचंद गाँधी की राजकोट में बदली, परिवार सहित राजकोट आना और कस्तूरबा माखन जी से सगाई।

1879 – 21 जनवरी 1879 को राजकोट के स्थानीय स्कूल में दाखिला।

1881 – राजकोट हाई स्कूल में पढाई।

1883 – कस्तूरबा माखन जी से विवाह।

1885 – गाँधी जी के पिता की मृत्यु, इसी वर्ष इनके पहले पुत्र का जन्म और कुछ समय बाद उसकी मृत्यु।

1887 – राजकोट हाई स्कूल से मैट्रिक की परीक्षा पास की, सामलदास कॉलेज (भावनगर) में प्रवेश।

1888 – पहले पुत्र हरीलाल का जन्म, बैरिस्टर की पढाई के लिये इंग्लैण्ड के लिये प्रस्थान।

1891 – बैरिस्टर की पढाई करके भारत लौटे, अपनी अनुपस्थिति में माता पुतलीबाई के निधन का समाचार, पहले बम्बई बाद में राजकोट में वकालात की असफल शुरुआत।

1892 – दूसरे पुत्र मणिलाल गाँधी का जन्म।

1893 – अफ्रीकी व्यापारी दादा अब्दुला के कानूनी सलाहकार का प्रस्ताव को स्वीकार कर अफ्रीका (डरबन) के लिये प्रस्थान, 31 मई 1893 को प्रिटोरिया रेल हादसा, रंग-भेद का सामना।

1894 – दक्षिण अफ्रीका में संघर्ष के प्रथम चरण का प्रारम्भ, नेटाल इण्डियन कांग्रेस की स्थापना।

1896 – भारत आगमन (6 महीने के लिये) और पत्नी और एक पुत्र को लेकर अफ्रीका वापस गये।

1897 – तीसरे पुत्र रामदास का जन्म।

1899 – बोअर युद्ध में ब्रिटिश की मदद के लिये भारतीय एम्बुलेंस सेवा प्रदान की।

1900 – चौथे और अन्तिम पुत्र देवदास का जन्म।

1901 – अफ्रीकी भारतियों को आवश्यकता के समय मदद करने के लिये वापस आने का आश्वासन देकर परिवार सहित स्वदेश आगमन, भारत का दौरा, कांग्रेस अधिवेशन में भाग और बबंई में वकालात का दफ्तर खोला।

1902 – अफ्रीका में भारतियों द्वारा बुलाये जाने पर अफ्रीका के लिये प्रस्थान।

1903 – जोहान्सवर्ग में वकालात दफ्तर खोला।

1904 – इण्डियन ओपिनियन सप्ताहिक पत्र का प्रकाशन।

1906 – जुल्लु युद्ध के दौरान भारतियों को मदद के लिये प्रोत्साहन, आजीवन ब्रह्मचर्य का संकल्प, एशियाटिक ऑर्डिनेन्स के विरोध में प्रथम सत्याग्रह।

1907 – ब्लैक एक्ट (भारतियों और अन्य एशियाई लोगों का जबरदस्ती पंजीयन) के विरोध में सत्याग्रह।

1908 – दक्षिण अफ्रीका (जोहान्सवर्ग) में पहली जेल यात्रा, दूसरा सत्याग्रह (पुनः जेल यात्रा)।

1909 – दक्षिण अफ्रीकी भारतियों की ओर से पक्ष रखने के इंग्लैण्ड यात्रा, नवम्बर (13-22 तारीख के बीच) में वापसी के दौरान हिन्द स्वराज पुस्तक की रचना।

1910 – 30 मई को जोहान्सवर्ग में टाल्सटाय और फिनिक्स सेंटमेंट की स्थापना।

1913 – द ग्रेट मार्च का नेतृत्व, 2000 भारतीय खदान कर्मियों की न्युकासल से नेटाल तक की पदयात्रा।

1915 – 21 वर्ष बाद भारत वापसी।

1916 – साबरमती नदी के किनारे (अहमदाबाद में) आश्रम की स्थापना, बनारस हिन्दु विश्वविद्यालय की स्थापना पर प्रथम बार गाँधी जी का मंच से भाषण।

1917 – बिहार के चम्पारन जिले में नील किसानों के हक के लिये सत्याग्रह आन्दोलन।

1918 – अहमदाबाद में मिल मजदूरों की हक की लङाई में मध्यस्था

1919 – रोलेट एक्ट और जलियावाला बाग हत्याकांड के विरोध में सत्याग्रह छेङा, जो आगे चलकर असहयोग आन्दोलन (1920) के नाम से प्रसिद्ध हुआ, यंग इण्डिया (अंग्रेजी) और नवजीवन (गुजराती) सप्ताहिक पत्रिका का संपादन।

1920 – जलियाँवाला बाग हत्याकांड के विरोध में केसर-ए-हिन्द की उपाधि वापस की, होमरुल लीग के अध्यक्ष निर्वाचित हुये।

1921 – असहयोग आन्दोलन के अन्तर्गत बंबई में विदेशी वस्त्रों की होली जलाई, साम्प्रदायिक हिंसा के विरोध में 5 दिन का उपवास।

1922 – चौरी-चौरा कांड के कारण असहयोग आन्दोलन को वापस लिया, राजद्रोह का मुकदमा और 6 वर्ष का कारावास।

1924 – बेलगाम कांग्रेस अधिवेसन में अध्यक्ष चुने गये, साम्प्रदायिक एकता के लिये 21 दिन का उपवास।

1928 – कलकत्ता कांग्रेस अधिवेशन में भाग, पूर्ण स्वराज का आह्वान।

1929 – कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में 26 जनवरी को स्वतंत्रता दिवस घोषित करके राष्ट्रव्यापी आन्दोलन आरम्भ।

1930 – नमक कानून तोङने के लिये साबरमती आश्रम से दांङी यात्रा जिसे सविनय अवज्ञा आन्दोलन का नाम दिया।

1931 – गाँधी इरविन समझौता, गाँधी जी ने दूसरे गोलमाज सम्मेलन में भाग लेने को तैयार।

1932 – यरवदा पैक्ट को ब्रिटिश स्वीकृति।

1933 – साबरमती तट पर बने आश्रम का नाम हरिजन आश्रम रखकर देश में अस्पृश्यता विरोधी आन्दोलन छेङा, हरिजन नामक सप्ताहिक पत्र का प्रकाशन।

1934 – अखिल भारतीय ग्रामोद्योग की स्थापना।

1936 – वर्धा में सेवाश्रम की स्थापना।

1937 – दक्षिण भारत की यात्रा।

1940 – विनोबा भावे को पहले व्यक्तिगत सत्याग्रही के रुप में चुना गया।

1942 – क्रिप्स मिशन की असफलता, भारत छोङो अभियान की शुरुआत, सचिव मित्र महादेव देसाई का निधन।

1944 – 22 फरवरी को गाँधी जी की पत्नी कस्तूरबा गाँधी जी की मृत्यु।

1946 – बंगाल के साम्प्रदायिक दंगो के संबंध में कैबिनेट मिशन से भेंट।

1947 – साम्प्रदायिक शान्ति के लिये बिहार यात्रा, जिन्ना और गवर्नल जनरल माउन्टबैटेन से भेंट, देश विभाजन का विरोध।

1948 – बिङला हाउस में जीवन का अन्तिम 5 दिन का उपवास, 20 जनवरी को प्रार्थना सभा में विस्फोट, 30 जनवरी को प्रार्थना के लिये जाते समय नाथूराम गोडसे द्वारा हत्या।

गाँधी जी के अनमोल वचन

  • “पाप से घृणा करो, पापी से नहीं”।
  • “जो बदलाव आप दुनिया में देखना चाहते है, वह पहले स्वंय में लाये।”
  • “वास्तविक सौन्दर्य ह्रदय की पवित्रता में है|”
  • “अहिंसा ही धर्म है, वही जिंदगी का एक रास्ता है|”
  • “गरीबी दैवी अभिशाप नहीं बल्कि मानवरचित षडयन्त्र है।”
  • “चरित्र की शुद्धि ही सारे ज्ञान का ध्येय होनी चाहिए|”
  • “जो लोग अपनी प्रशंसा के भूखे होते हैं, वे साबित करते हैं कि उनमें योग्यता नहीं है|”
  • “जब भी आप एक प्रतिद्वंद्वी के साथ सामना कर रहे हैं। प्यार के साथ उसे जीतना।”
  • “अहिंसा, किसी भी प्राणी को विचार, शब्द या कर्म से चोट नहीं पहुंचाना है, यहाँ तक कि किसी प्राणी के लाभ के लिए भी नहीं।”
  • “जहाँ प्यार है, वहाँ जीवन है।”
  • “मैं आपके मसीहा (ईशा) को पसन्द करता हूँ, मैं आपके ईसाइयों को पसंद नहीं करता। आपके ईसाई आपके मसीहा (ईशा) के बहुत विपरीत हैं।”
  • “सबसे पहले आपकी उपेक्षा करते है, तब वे आप पर हंसते हैं, तब वे आप से लड़ते हैं, तब आप जीतते है।”
  • “मैं खुद के लिए कोई पूर्णता का दावा नहीं करता। लेकिन मैं सच्चाई के पीछे एक भावुक साधक का दावा करता हूँ, जो भगवान का दूसरा नाम हैं।”
  • “मेरे पास दुनिया को पढ़ाने के लिए कोई नई बात नहीं है। सत्य और अहिंसा पहाड़ियों के जैसे पुराने हैं। मैंनें पूर्ण प्रयास के साथ विशाल पैमाने पर दोनों में प्रयोगों की कोशिश है, जितना मैं कर सकता था।”
  • “कमज़ोर कभी माफ नहीं कर सकते। क्षमा ताकतवर की विशेषता है।”
  • “आंख के बदले आंख पूरी दुनिया को अंधा बना देगी।”
  • “खुशी जब मिलेगी जब जो आप सोचते है, कहते है, और जो करते है, सामंजस्य में हों।”
  • “ऐसे जियो जैसे कि तुम कल मरने वाले हो। ऐसे सीखो की तुम हमेशा के लिए जीने वाले हो।”
  • “किसी राष्ट्र की संस्कृति उसके लोगों के दिलों और आत्माओं में बसती है|”
  • “कुछ लोग सफलता के सपने देखते हैं जबकि अन्य व्यक्ति जागते हैं और कड़ी मेहनत करते हैं|”
  • “जिज्ञासा के बिना ज्ञान नहीं होता | दुःख के बिना सुख नहीं होता|”
  • “विश्वास करना एक गुण है, अविश्वास दुर्बलता कि जननी है|”
  • “यदि मनुष्य सीखना चाहे, तो उसकी हर भूल उसे कुछ शिक्षा दे सकती है।”
  • “राष्ट्रीय व्यवहार में हिन्दी को काम में लाना देश की उन्नति के लिए आवश्यक है|”
  • “चिंता के समान शरीर का क्षय और कुछ नहीं करता, और जिसे ईश्वर में जरा भी विश्वास है उसे किसी भी विषय में चिंता करने में ग्लानि होनी चाहिए।”
  • “हंसी मन की गांठें बड़ी आसानी से खोल देती है|”
  • “काम की अधिकता नहीं, अनियमितता आदमी को मार डालती है|”
  • “लम्बे-लम्बे भाषणों से कहीं अधिक मूल्यवान इंच भर कदम उठाना है।”
  • “आपका कोई काम महत्वहीन हो सकता है, किन्तु महत्वपूर्ण यह है कि आप कुछ करें।”
  • “मेरी आज्ञा के बिना मुझे कोई नुकसान नहीं पहुँचा करता।”
  • “क्रोध एक किस्म का क्षणिक पागलपन है।”
  • “क्षणभर भी बिना काम के रहना ईश्वर से चोरी समझो। मैं आन्तरिक और बाहरी सुख का दूसरा कोई भी रास्ता नहीं जानता।”
  • “अहिंसा में इतनी ताकत है कि वह विरोधियों को भी अपना मित्र बना लेती है और उनका प्रेम प्राप्त कर लेती है।”
  • “मैं हिन्दी के जरिये प्रांतीय भाषाओं को दबाना नहीं चाहता बल्कि उनके साथ हिन्दी को भी मिला देना चाहता हूँ।”
  • “एक धर्म सभी भाषणों से परे है।”
  • “किसी में विश्वास करना और उसे ना जीना बेईमानी है।”
  • “बिना उपवास के कोई प्रार्थना नहीं और बिना प्रार्थना के कोई उपवास नहीं।”
  • “मेरा जीवन ही मेरा संदेश है।”
  • “मानवता का सबसे बङा हथियार शान्ति है।”

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महात्मा गांधी ऐसे ही महापुरुषों में से एक थे। महात्मा गांधी एक युग पुरुष थे जिनके प्रति पूरे विश्व में सम्मान की भावना है।

बचपन और शिक्षा

इस महान व्यक्ति का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात के पोरबंदर नामक स्थान पर हुआ था। इनका पूरा नाम मोहनदास करमचंद गाँधी था। उनके पिता, करमचंद गांधी, राजकोट के दीवान थे और माता पुतलीबाई एक धार्मिक स्वभाव वाली सीधी-सादी महिला थीं। मोहनदास के व्यक्तित्व पर माता के चरित्र की छाप दिखाई देती थी।

Mahatma Gandhi Essay in Hindi & Biography

पोरबंदर में अपनी प्राथमिक शिक्षा पूरी करने और राजकोट से मैट्रिक की परीक्षा पास करने के बाद, वे वकालत के लिए इंग्लैंड गए। उन्हें परत अध्ययन के बाद वापसी की वकालत की गई थी। एक परीक्षण के समय उन्हें दक्षिण अफ्रीका जाना पड़ा, जहा भारतीयों की दुर्दशा देखकर वे दुखी हुए।

उनमें राष्ट्रीय भावना जागृत हुई और वे भारतीयों की सेवा में लग गए। गांधी ने अंग्रेजों की कुटिल नीति और अमानवीय व्यवहार के खिलाफ सत्याग्रह आंदोलन शुरू किया।

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महात्मा गांधी की प्रारंभिक जीवन कहानी

महात्मा गांधी करमचंद उत्तमचंद गांधी (1822-1885) और पुतलीबाई (1844-1891) के सबसे छोटे पुत्र थे। हालाँकि उनके पास केवल प्राथमिक शिक्षा थी, करमचंद अपने कौशल और कड़ी मेहनत के लिए जाने जाते थे और पोरबंदर (गुजरात) की रियासत के दीवान के रूप में कार्य करते थे।

1874 में करमचंद उत्तमचंद गांधी राजकोट में महाराजा के सलाहकार के रूप में सेवा करने के लिए राजकोट गए। 1876 ​​में, उन्हें राजकोट का दीवान नियुक्त किया गया। गांधीजी का प्रारंभिक प्रशिक्षण पोरबंदर में हुआ।

वह एक औसत छात्र थे जिसने पुरस्कार जीता था लेकिन बहुत शर्मीला और अंतर्मुखी थे । गांधीजी श्रवण कुमार और सत्यवादी राजा हरीश चंद्र की कहानियों से काफी प्रेरित थे, जिन्होंने उनके करियर और लक्ष्यों को आकार देने में एक आवश्यक भूमिका निभाई।

महात्मा गांधी भी अपनी माँ पुतलीबाई से काफी प्रभावित थे, जो एक उत्साही भक्त थीं, उन्होंने प्रार्थना के साथ अपने काम की शुरुआत की। वह प्रति सप्ताह दो से तीन निर्बाध पदों को बनाए रखने के लिए भी जानी जाती हैं।

गांधीजी ने 13 साल की उम्र में कस्तूरबाई माखनजी कपाड़िया से शादी की और फिर मई 1883 में 14 साल की उम्र में। उनके पहले बेटे का निधन हो गया। वह कुछ ही दिन जीवित रही । उनके चार बेटे थे, हरिलाल (1888), मणिलाल (1892), रामदास (1897) और देवदास (1900)।

गांधी जी ने नवंबर 1887 में अहमदाबाद में कॉलेज से स्नातक किया और समालदास कॉलेज भावनगर में कॉलेज में दाखिला लिया, लेकिन पोरबंदर में अपने परिवार से जुड़ने के लिए छोड़ दिया |

लंदन से कानून में स्नातक

एक ब्राह्मण और गांधी परिवार के मित्र मावजी दवे जोशीजी ने महात्मा गांधी को लंदन के इनर टेम्पल से डिग्री प्राप्त करने के लिए लंदन जाने का सुझाव दिया।

हालाँकि गांधीजी स्वेच्छा से सहमत थे, उनकी माँ पुतलीबाई उन्हें शराब और मांस के लिए जाने के डर से लंदन नहीं भेज रही थीं। हालाँकि, यह धीरे-धीरे कम हो गया जब गांधीजी ने शराब, मांस और महिलाओं से परहेज करने के लिए शब्द दिया।

22 जून, 1891 को गांधीजी ने भारत लौटकर परत दर परत अभ्यास शुरू किया।

महात्मा गांधी द्वारा वकील अभ्यास

गांधीजी ने जून 1891 को भारत के लिए लंदन छोड़ दिया। उन्होंने थोड़े समय के लिए मुंबई में एक वकील के रूप में अभ्यास किया, लेकिन वे असफल हो गए क्योंकि वे गवाहों से पूछताछ नहीं कर सकते थे।

इसके बाद वह राजकोट लौट आए, जहाँ उन्होंने परीक्षण दलों के लिए विनम्रता से कमाने के लिए याचिकाएँ तैयार कीं, लेकिन एक ब्रिटिश अधिकारी के साथ संघर्ष के कारण उन्हें काम बंद करने के लिए मजबूर हो गए |

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दक्षिण अफ्रीका –  नागरिक अधिकार (1893-1914)

राजकोट में अपने शिक्षुता के दौरान, काठियावाड़ के एक धनी मुस्लिम व्यापारी दादा अब्दुल्ला ने गांधी जी से संपर्क किया।

अब्दुल्ला ने दक्षिण अफ्रीका में एक सफल अग्रेषण व्यवसाय चलाया और दक्षिण अफ्रीका के मामले को संभालने के लिए काठियावाड़ क्षेत्र से अधिमानतः एक वकील की आवश्यकता थी। गांधीजी ने उनके वेतन के बारे में पूछा और इसे संतोषजनक पाया। 1893 में वे जोहान्सबर्ग (दक्षिण अफ्रीका) गए।

दक्षिण अफ्रीका पहुंचने पर, गांधीजी ने त्वचा के रंग के आधार पर नस्लीय भेदभाव देखा। जिस ट्रेन में वह चढ़े तो उनका विरोध हुआ, उन्हें ट्रेन के फर्स्ट-क्लास डिब्बे से बाहर फेंक दिया गया, रात भर स्टेशन पर बैठे रहे, ठंड से काँपते रहे, लेकिन दूसरी ट्रेन में चढ़ने से इनकार कर दिया।

इस घटना ने उसे गहराई से प्रभावित किया और दक्षिण अफ्रीका और भारत में नागरिक अधिकारों के आंदोलनों का बीजारोपण किया।

जिस मामले में गांधी जी अफ्रीका गए थे, वह 1894 में समाप्त हो गया। भारतीय व्यापारी समुदाय ने गांधीजी के लिए एक अच्छी तरह से संगठित किया और उन्हें अपने प्रवासियों को कानूनी रूप से खरीदारों और श्रमिकों की सहायता के लिए राजी किया गया, क्योंकि अधिकांश लोग मुश्किल से इंग्लिश पढ़-लिख सकते थे । भारतीय समुदाय द्वारा उन्हें दिए गए विश्वास और जिम्मेदारी के साथ, महात्मा गांधी वहाँ रहने के लिए सहमत हुए।

दक्षिण अफ्रीका में रहने के दौरान, उन्होंने भारतीयों के नागरिक अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ी, उन्हें गोरे लोगों के बराबर दर्जा देने की मांग की। उन्होंने यात्रा, होटल और अन्य सार्वजनिक स्थानों पर भेदभाव का मुकाबला किया। भारतीयों के लिए दक्षिण अफ्रीका में समान मानवाधिकारों को बढ़ावा देने के लिए गांधीजी ने 1894 में मूल भारतीय कांग्रेस की स्थापना की।

बाद में, उन्होंने अफ्रीका के स्वदेशी लोगों के मतदान के अधिकारों के लिए संघर्ष किया और “वोट देने के अधिकार” के लिए कई विरोध प्रदर्शनों का नेतृत्व किया। गांधी जी को एक राष्ट्रीय नायक घोषित किया गया था जब 1894 में अश्वेत अफ्रीकियों ने वोट देने का अधिकार प्राप्त किया था, और महात्मा गांधी की कई मूर्तियाँ अभी भी दक्षिण अफ्रीका में देखी जा सकती हैं।

भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन (1915-1947):

महात्मा गांधी 1915 में दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटे और ब्रिटिश साम्राज्य की भीड़ भरी राजनीति पर नाराज थे। उन्होंने ब्रिटिश सरकार द्वारा भारतीयों पर लागू किए गए अनुचित कर कानूनों के लिए संघर्ष किया, उनकी अहिंसा और सविनय अवज्ञा की नीति का सख्ती से पालन किया। माननीय महात्मा (महान आत्मा) को पहली बार उन्हें रवींद्रनाथ टैगोर ने 6 मार्च 1915 को सौंपा था।

प्रथम विश्व युद्ध के दौरान गांधीजी ने एक आवश्यक भूमिका निभाई, भारतीय युवाओं से रक्षा के लिए सेना में भर्ती होने की अपील की। महात्मा गांधी ने 1931 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का नेतृत्व ग्रहण किया। उन्होंने दमनकारी राजनीति और ब्रिटिश साम्राज्य के अनुचित कर नियमों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया।

जैसे – चंपारण की उत्तेजना, खेर की उत्तेजना, खिलाफत आंदोलन, और गैर-सहकारी आंदोलन कुछ महत्वपूर्ण कदम थे जिनका उन्होंने नेतृत्व किया। उन्होंने दांडी मार्च (गुजरात) के तटीय शहर में भारतीयों द्वारा नमक उत्पादन पर ब्रिटिश प्रशासन द्वारा लगाए गए करों का विरोध करते हुए दांडी मार्च का नेतृत्व किया।

दांडी मार्च का उद्देश्य समुद्री जल से नमक का उत्पादन करना था, जैसा कि आमतौर पर भारतीयों, विशेष रूप से तटीय क्षेत्रों द्वारा अपनी नमक की जरूरतों को पूरा करने के लिए किया जाता था। दांडी मार्च 12 मार्च 1930 से 25 दिनों तक चला। 6 अप्रैल 1930 को, ब्रिटिश शासकों को आखिरकार विरोध प्रदर्शनों के आगे झुकना पड़ा |

नमक सत्याग्रह के अलावा उन्होंने ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ कई विरोध प्रदर्शनों का आयोजन भी किया, जैसे स्वदेशी आंदोलन, भारत छोड़ो आंदोलन और विभिन्न अन्य, भारत को कुल स्वतंत्रता या “पूर्ण स्वराज” या स्व-शासन के मार्ग पर ले गए।

महात्मा गांधी के सिद्धांत

गांधीजी ने अंग्रेजों का विरोध जताने के लिए सत्याग्रह को अपना प्राथमिक हथियार बनाया और अहिंसक हथियारों के सामने अंग्रेजों की कुटिल नीति और अमानवीय व्यवहार के खिलाफ सत्याग्रह आंदोलन शुरू किया।

उन्होंने असहयोग आंदोलन और सविनय अवज्ञा आंदोलन का नेतृत्व किया। गांधीजी के आलाकमान और सच्चाई के सामने ब्रिटिश झुक गए और भारत छोड़ दिया। इस प्रकार हमारा देश 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्र हो गया।

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गांधी जी के अन्य कार्य

गांधीजी ने अछूतों को बचाया और उनका नाम हरिजन रखा। ’उन्होंने भाषा, जाति और धर्म में अंतर को खत्म करने का प्रयास किया, स्वदेशी वस्तुओं के उपयोग पर जोर दिया।

उन्होंने सूत कातना, सभी धर्मों का सम्मान करना और जीवन में सत्य, अहिंसा को अपनाना सिखाया। गांधीजी ने दुनिया को शांति का संदेश दिया।

महात्मा गांधी का नेतृत्व

महात्मा गांधी के नेतृत्व में उत्तर से दक्षिण या पूर्व से पश्चिम तक का पूरा भारत एकजुट था। भारतीय जनता से, विशेषकर गरीब वर्ग के लिए, उनकी बराबरी का कोई नेता नहीं था।

उस समय सभी सामाजिक समूहों के लोग; महात्मा गांधी या बापू के एक आह्वान पर लाखों लोग इकट्ठा हुए (जैसा कि वे भारत में प्रसिद्ध थे), धार्मिक और जातिगत मतभेदों को भूल गए।

अहिंसा और सत्याग्रह की नीति के उनके सख्त पालन ने उन्हें दुनिया भर से पहचान दिलाई। उनके पास अभी भी दक्षिण अफ्रीका में कई समर्थक हैं, जहां उन्होंने मूल अफ्रीकी निवासियों और भारतीय निवासियों के नागरिक अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ी।

स्वतंत्रता के लिए भारतीय लड़ाई में उनका योगदान अभूतपूर्व था, और यह अभी भी माना जाता है कि अहिंसा और सत्याग्रह की उनकी नीति के कारण, भारत ने 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्रता हासिल की।

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की मृत्यु

महात्मा गांधी ने स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान कई उपवास किए थे। उनके अंतिम में से एक नव निर्मित पाकिस्तान से धन की मांग थी, जैसा कि भारत सरकार ने सहमति व्यक्त की थी।

भारत सरकार ने पाकिस्तान को 75 मुकुट में से 25 मुकुट दिए लेकिन पाकिस्तानी सेना द्वारा जम्मू और कश्मीर पर हमला करने के बाद शेष राशि का भुगतान करने से इनकार कर दिया।

भारत सरकार का मानना ​​था कि पाकिस्तानी सेना भारत के खिलाफ धन का उपयोग करेगी। हालाँकि, गांधीजी इस निर्णय के खिलाफ थे, यह बताते हुए कि उनके बीच एक समझौते पर वापसी होगी।

वह अपनी मृत्यु तक या अपनी मांग पूरी होने तक उपवास पर बैठे। यह भारत का दुर्भाग्य था कि हम स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद इस नेता का मार्गदर्शन अधिक समय तक नहीं प्राप्त कर सके। गांधीजी का जीवन 30 जनवरी 1948 को नाथूराम गोडसे नामक एक व्यक्ति की गोली से समाप्त हो गया। जिन्होंने सोचा था कि गांधी का पाकिस्तान का समर्थन भारतीय विरोधी था।

अपने पूरे जीवन में, महात्मा गांधी ने नागरिक अधिकारों के लिए संघर्ष किया, अहिंसा और सविनय अवज्ञा के सिद्धांतों का सख्ती से पालन किया।

गांधीजी ने प्रेम और भाईचारे की भावना के साथ भारत के लोगों के दिलों पर राज किया। वे देश में रामराज्य स्थापित करना चाहते थे। भारत की स्वतंत्रता के बाद, देश को दो भागों में विभाजित किया गया था – भारत और पाकिस्तान। इसको लेकर वह निराश थे।

भारत के बीच से एक दूरदर्शी, युगीन भक्षक चला गया। आज गांधी जी हमारे साथ नहीं हैं, लेकिन हम उनके आदर्श सिद्धांतों को हमेशा याद रखेंगे। उसका नाम अमर रहेगा।

FAQs. on Mahatma Gandhi

महात्मा गांधी का जन्म कब और कहां हुआ था.

उत्तर – उनका जन्म 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात के पोरबंदर शहर में हुआ था। मोहनदास के पिता का नाम करमचंद गांधी था जो राजकोट की रियासत के दीवान थे। मोहनदास की माता पुतिलाबाई एक धार्मिक प्रवृत्ति की महिला थीं

गांधीजी ने कितने आंदोलन किए थे?

उत्तर – गांधीजी द्वारा कई आंदोलन चलाए गए हैं और उनमें से अधिकांश 1. असहयोग आंदोलन, 2. सत्याग्रह आंदोलन, 3. भारत छोड़ो आंदोलन आदि हैं।

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आशा करते है की ये Mahatma Gandhi Essay in Hindi आप को पसंद आई होगी – धन्यवाद !

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Nibandh

महात्मा गांधी पर निबंध

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रूपरेखा : प्रस्तावना - महात्मा गांधी का जन्म कब और कहां हुआ था - महात्मा गांधी का नेतृत्व - महात्मा गांधी का आंदोलन - नमक सत्याग्रह - दलित आंदोलन - भारत छोड़ो आंदोलन - चंपारण सत्याग्रह - फादर ऑफ नेशन - उपसंहार।

भारत महापुरुषों का एक अनोखा देश है। जवाहरलाल नेहरू, बाल गंगाधर टिळक, महादेव गोविंद रानडे, महात्मा गांधी, सरदार वल्लभभाई पटेल, सुभाषचंद्र बोस, आदि अनेक नेताओं ने हमारे इतिहास की शोभा बढ़ाई है। लेकिन महात्मा गांधी बापू या राष्ट्रपिता के रूप में भारत में बहुत प्रसिद्ध हुए।

महात्मा गांधी का पूरा नाम मोहनदास करमचंद गाँधी है। उनका जन्म 2 अक्टूबर 1869 में गुजरात के पोरबंदर में हुआ था। महात्मा गाँधी को महात्मा उनके महान कार्यो और उनके महानता के लिए कहा जाता है। महात्मा गाँधी एक महान स्वंतंत्रता सेनानी और अहिंसक कार्यकर्ता थे।

महात्मा गांधीजी में नेतृत्व की अद्भुत क्षमता थी। सरल भाषा में दिए गए उनके भाषण देशवासियों पर जादू सा असर करते थे तथा उन्हें देश के प्रति जागृत करते थे। उनकी एक पुकार पर आजादी के दीवानों की टोलियाँ मातृभूमि पर बलिदान देने के लिए निकल पड़ती थीं। पच्चीस वर्षों से भी अधिक समय तक उन्होंने अंग्रेजी हुकूमत के विरुद्ध कई अहिंसक आंदोलन चलाए थे। अंत में अंग्रेज शासकों की लाठियों, बंदूकों, तोपों और बमों पर अहिंसा ने विजय पाई और सदियों से गुलाम रहा भारत आजाद हुआ। इसीलिए गांधीजी युगपुरुष कहलाए गए।

देश की आजादी में मूलभूत भूमिका निभाने वाले तथा सभी को सत्य और अहिंसा का मार्ग दिखाने वाले बापू को सर्वप्रथम बापू कहकर, राजवैद्य जीवराम कालिदास ने 1915 में संबोधित किया। आज दशकों बाद भी संसार उन्हें बापू के नाम से पुकारता हैं।

महात्मा गांधी को पहली बार फादर ऑफ नेशन कहकर किसने संबोधित किया, इसके संबंध में कोई स्पष्ठ जानकारी प्राप्त नहीं है पर 1999 में गुजरात की हाईकोर्ट में दाखिल एक मुकदमे के वजह से जस्टिस बेविस पारदीवाला ने सभी टेस्टबुक में, रवींद्रनाथ टैगोर ने पहली बार गाँधी जी को फादर ऑफ नेशन कहा, यह जानकारी देने का आदेश जारी किया।

जलियांवाला बाग नरसंहार से गाँधी जी को यह ज्ञात हो गया था की ब्रिटिश सरकार से न्याय की अपेक्षा करना व्यर्थ है। अतः उन्होंने सितंबर 1920 से फरवरी 1922 के मध्य भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेतृत्व में असहयोग आंदोलन चलाया। लाखों भारतीय के सहयोग मिलने से यह आंदोलन अत्यधिक सफल रहा। और इससे ब्रिटिश सरकार को भारी झटका लगा।

12 मार्च 1930 से साबरमती आश्रम (अहमदाबाद में स्थित स्थान) से दांडी गांव तक 24 दिनों का पैदल मार्च निकाला गया। यह आंदोलन ब्रिटिश सरकार के नमक पर एकाधिकार के खिलाफ छेड़ा गया। गाँधी जी द्वारा किये गए आंदोलनों में यह सर्वाधिक महत्वपूर्ण आंदोलन था।

गाँधी जी द्वारा 1932 में अखिल भारतीय छुआछूत विरोधी लीग की स्थापना हुई और उन्होंने छुआछूत विरोधी आंदोलन की शुरूआत 8 मई 1933 में की।

ब्रिटिश साम्राज्य से भारत को तुरंत आजाद करने के लिए महात्मा गाँधी द्वारा अखिल भारतीय कांग्रेस के मुम्बई अधिवेशन से द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान 8 अगस्त 1942 को भारत छोड़ो आंदोलन आरम्भ किया गया।

ब्रिटिश ज़मींदार गरीब किसानो से अत्यधिक कम मूल्य पर जबरन नील की खेती करा रहे थे। इससे किसानों में भूखे मरने की स्थिति पैदा हो गई थी। यह आंदोलन बिहार के चंपारण जिले से 1917 में प्रारंभ किया गया। और यह उनकी भारत में पहली राजनैतिक जीत थी।

महात्मा गाँधी के शब्दों में “कुछ ऐसा जीवन जियो जैसे की तुम कल मरने वाले हो, कुछ ऐसा सीखो जिससे कि तुम हमेशा के लिए जीने वाले”। राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी इन्हीं सिद्धान्तों पर जीवन व्यतीत करते हुए भारत की आजादी के लिए ब्रिटिस साम्राज्य के खिलाफ अनेक आंदोलन लड़े। गांधीजी ने अपना सब कुछ न्योछावर कर भारत का नवनिर्माण किया। वे भारत में ही नहीं, सारे विश्व में अपने कार्यों से चर्चे में रहे। ऐसे महान देशभक्त और महामानव को आज भी सभी लोग याद करते है। महात्मा गांधी भारत एवं भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के एक प्रमुख राजनीतिक एवं आध्यात्मिक नेता थे।

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महात्मा गांधी पर लेख

essay on mahatma gandhi ji in hindi

By विकास सिंह

paragraph on mahatma gandhi in hindi

महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता के रूप में जाना जाता है। वह सबसे प्रिय और सम्मानित भारतीय नेताओं में से एक थे जिन्होंने अपने अनोखे तरीके से अंग्रेजों से लड़ाई लड़ी और हमारे देश को स्वतंत्रता प्राप्त करने में मदद की।

महात्मा गांधी पर लेख, paragraph on mahatma gandhi in hindi (100 शब्द)

मोहनदास करमचंद गांधी, जिन्हें महात्मा गांधी के नाम से जाना जाता है, का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को हुआ था। वे पेशे से वकील थे। वह कानून का अभ्यास करते थे और एक आरामदायक जीवन बिता सकते थे। हालाँकि, उन्होंने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेकर अंग्रेजों से लड़ने का विकल्प चुना।

उन्होंने विभिन्न स्वतंत्रता आंदोलनों को अंजाम दिया और कई भारतीय नागरिकों को उसी में शामिल होने के लिए प्रेरित किया। इन आंदोलनों का अंग्रेजों पर व्यापक प्रभाव पड़ा। अपने समय के विभिन्न अन्य नेताओं के विपरीत, गांधीजी ने अंग्रेजों को भगाने के लिए हिंसक और आक्रामक साधनों का सहारा नहीं लिया।

उन्होंने सत्य और अहिंसा का मार्ग अपनाया और बड़ी संख्या में भारतीयों ने उनका समर्थन किया। उन्होंने भारत को ब्रिटिश शासन से मुक्त कराने में प्रमुख भूमिका निभाई।

महात्मा गांधी पर लेख, 150 शब्द:

मोहनदास करमचंद गांधी उर्फ ​​महात्मा गांधी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को पोरबंदर, गुजरात में हुआ था। उनके पिता, करमचंद उत्तमचंद गांधी ने पोरबंदर रियासत के मुख्यमंत्री के रूप में काम किया।

महात्मा गांधी ने अपनी स्कूली शिक्षा गुजरात के अल्फ्रेड हाई स्कूल से की और लंदन विश्वविद्यालय से कानून की पढ़ाई की। महात्मा गांधी ने 1883 में कस्तूरबा गांधी से शादी की। वे अपने पहले बच्चे हीरालाल के जन्म के बाद 1988 में कानून का अध्ययन करने के लिए इंग्लैंड चले गए।

उन्होंने कानून की डिग्री हासिल की। हालांकि, उन्हें जल्द ही पता चला कि यह जीवन में उनका उद्देश्य नहीं था। उन्होंने अपना पेशा छोड़ दिया और स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हो गए। उन्होंने कई भारतीयों को अंग्रेजों से लड़ने के लिए अहिंसा के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया।

अंततः 1947 में अंग्रेजों को देश से बाहर निकाल दिया गया और महात्मा गांधी ने उसी में एक बड़ी भूमिका निभाई। दुर्भाग्य से, हमने 30 जनवरी 1948 को गांधीजी को खो दिया। नाथूराम गोडसे ने उनके सीने में तीन गोलियां दागी और उन्होंने आत्मसमर्पण कर दिया।

महात्मा गांधी पर अनुच्छेद, paragraph on mahatma gandhi in hindi (200 शब्द)

महात्मा गांधी अंग्रेजों से लड़ने के अपने अनोखे तरीकों के लिए जाने जाते थे। उनकी विचारधारा अधिकांश स्वतंत्रता सेनानियों से अलग थी। अंग्रेजों ने भारतीयों के साथ क्रूर व्यवहार किया। उन्होंने उनके साथ जानवरों जैसा व्यवहार किया। उन्होंने उन्हें काम के साथ लोड किया और हेम मेजरली भुगतान किया।

इसने कई भारतीयों में गुस्सा पैदा किया जो अंग्रेजों से लड़ने के लिए आगे आए। आहत और क्रोध की भावना से भरे, उन्होंने ब्रिटिश अधिकारियों को देश से बाहर निकालने के लिए आक्रामक साधनों का सहारा लिया। हालाँकि, महात्मा गांधी ने पूरी तरह से अलग तरीका चुना जिससे दूसरों को आश्चर्य हुआ।

शांति और अहिंसा:

एक स्वतंत्रता सेनानी के रूप में, महात्मा गांधी ने आक्रामक तरीके से लड़ने के बजाय शांति और अहिंसा का मार्ग अपनाया। उन्होंने विभिन्न आंदोलनों और विरोधों का आयोजन किया, लेकिन सभी शांतिपूर्ण तरीके से। उसके अनुसार, यदि कोई व्यक्ति आपको एक गाल पर थप्पड़ मारे तो उसे थप्पड़ मारने के बजाय आपको उसे दूसरा गाल भी भेंट करना चाहिए।

दूसरों के लिए एक प्रेरणा:

गांधीजी के अंग्रेजों से लड़ने के तरीके वास्तव में प्रभावी थे। कई अन्य स्वतंत्रता सेनानी उनकी विचारधाराओं से प्रेरित थे और उनका अनुसरण करते थे। उसकी हरकतों का समर्थन करने के लिए लोग बड़ी संख्या में इकट्ठा हुए।

निष्कर्ष:

महात्मा गांधी को सबसे महान स्वतंत्रता सेनानियों में से एक के रूप में जाना जाता है। वह एक सच्चे नेता थे। उनकी विचारधारा आज भी लोगों को प्रेरित करती है।

महात्मा गांधी पर लेख, 250 शब्द:

भारत के स्वतंत्रता संग्राम में कई भारतीय नेताओं ने भाग लिया और उनमें से प्रत्येक के लिए हमारे मन में बहुत सम्मान है। यह उनके संयुक्त प्रयासों के कारण था कि हमने स्वतंत्रता प्राप्त की। हालांकि, किसी ने भी महात्मा गांधी जैसे भारतीय नागरिकों के दिमाग पर कोई असर नहीं डाला। गांधीजी को सही मायने में राष्ट्रपिता कहा जाता है।

महात्मा गांधी ने हमें सही रास्ता दिखाया:

एक पिता की तरह ही उन्होंने लाखों भारतीयों को जीवन में सही राह की ओर अग्रसर किया। उन्होंने अपने लोगों को सच बोलना सिखाया चाहे कोई भी परिणाम हो। उनका दृढ़ विश्वास था कि व्यक्ति जीवन में तभी सफलता प्राप्त कर सकता है, जब उसमें सच्चाई को स्वीकार करने और बोलने की हिम्मत हो।

सत्य के मार्ग पर चलने वाले व्यक्ति को अपने रास्ते पर कष्टों का सामना करना पड़ सकता है लेकिन अंततः सफलता मिलती है। उन्होंने अपने लोगों को अपनी योजनाओं को आगे बढ़ाने के लिए अहिंसक साधनों को अपनाने का आग्रह और प्रेरित किया उन्होंने कहा की यह शिक्षा केवल एक अभिभावक अपने बच्चों को दे सकता है।

महात्मा गांधी ने स्वतंत्रता कोई ज़िम्मेदारी ली:

एक पिता की तरह, महात्मा गांधी ने भारतीय नागरिकों को अंग्रेजों के चंगुल से मुक्त कराने की जिम्मेदारी ली। उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ विभिन्न आंदोलनों की शुरुआत की और लोगों को उसी में भाग लेने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने बैठकें कीं और लोगों को आगे आने और स्वतंत्रता के संघर्ष में शामिल होने के लिए प्रेरित करने के लिए व्याख्यान दिए। उन्होंने अपने अनुयायियों का मार्गदर्शन किया और उन्हें सही दिशा में आगे बढ़ाया।

महात्मा गांधी को बापू के नाम से जाना जाता है, जिसका अर्थ है पिता। उनके बच्चे, अर्थात, भारत के नागरिक हर साल 2 अक्टूबर को उनका जन्मदिन पूरे उत्साह के साथ मनाते हैं। उनका जन्मदिन भारत के तीन राष्ट्रीय त्योहारों में से एक है। यह देश में एक राष्ट्रीय अवकाश है।

महात्मा गांधी पर लेख, paragraph on mahatma gandhi in hindi (300 शब्द)

महात्मा गांधी ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रूप से भाग लिया और अंग्रेजों को देश से बाहर खदेड़ने के लिए हजारों भारतीयों को अपने मिशन में उनका अनुसरण करने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने कई आंदोलनों का आयोजन किया, जिसने ब्रिटिशों को बहुत प्रभावित किया और देश में अपनी पैठ को कमजोर किया।

महात्मा गांधी ने कई आंदोलनों का नेतृत्व किया:

गांधीजी ने कई स्वतंत्रता आंदोलनों की शुरुआत की। दांडी मार्च, नमक सत्याग्रह, असहयोग आंदोलन और भारत छोड़ो आंदोलन इनमें से कुछ आंदोलनों में शामिल थे। इन सभी आंदोलनों ने ब्रिटिश शासन को कमजोर करने के लिए अहिंसक साधनों का उपयोग किया। अंग्रेज अपने तरीके से हैरान थे और उन्हें रोकना मुश्किल हो गया क्योंकि उन्होंने किसी भी तरह का कहर या विनाश नहीं किया।

उनके सभी आंदोलनों को शांतिपूर्ण तरीके से अंजाम दिया गया था और फिर भी अंग्रेजों पर भारी प्रभाव पड़ा। स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने और भारत में विभिन्न आंदोलनों की शुरुआत करने से पहले, गांधीजी ने दक्षिण अफ्रीका में रंग भेदभाव के खिलाफ अहिंसक विरोध प्रदर्शन किया। उन्हें वहां कई लोगों का समर्थन प्राप्त था।

महात्मा गांधी – प्रेरणा का स्रोत:

उस समय के दौरान जब भारतीय अंग्रेजों के प्रति रोष और घृणा से भरे थे और उन्होंने हिंसक तरीकों का उपयोग करके उन्हें नष्ट करना चाहा, गांधीजी की शांतिपूर्ण और प्रभावी तरीके से लड़ने की पद्धति कई के लिए प्रेरणा का स्रोत साबित हुई। उन्होंने देश के युवाओं को अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने के लिए प्रेरित करने के लिए भाषण दिए।

कई प्रमुख नेताओं ने उनके साथ जुड़कर स्वतंत्रता प्राप्त करने के अपने तरीके अपनाए। आम जनता ने भी उनके नेतृत्व में आंदोलनों में भाग लिया। उन्हें उनकी विचारधाराओं के लिए आज भी याद किया जाता है और कई लोगों को प्रेरित करता रहता है। उनका जन्मदिन, 2 अक्टूबर भारत के राष्ट्रीय त्योहारों में से एक है।

इस प्रकार, महात्मा गांधी ने स्वतंत्रता संग्राम में एक प्रमुख भूमिका निभाई। उन्होंने हजारों भारतीयों के लिए एक प्रेरणा के रूप में सेवा की जो इसे सफल बनाने के लिए उनकी स्वतंत्रता आंदोलनों में शामिल हुए।

महात्मा गांधी पर लेख, 350 शब्द:

महात्मा गांधी का जन्म गुजरात के पोरबंदर राज्य में एक हिंदू व्यापारी जाति के परिवार में हुआ था। वह एक भारतीय कार्यकर्ता और नेता बन गए, जिन्होंने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भाग लिया। उन्होंने विभिन्न अन्य नेताओं के साथ-साथ आम जनता के लिए एक प्रेरणा के रूप में कार्य किया जो उनके नेतृत्व में स्वतंत्रता आंदोलनों में शामिल हुए।

महात्मा गांधी – जीवन:

मोहनदास करमचंद गांधी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को करमचंद उत्तमचंद गांधी और पुतलीबाई के घर हुआ था। उनके पिता करमचंद पोरबंदर के मुख्यमंत्री थे, उनकी माँ एक गृहिणी थीं। उनके पिता बाद में राजकोट के मुख्यमंत्री बने। करमचंद और पुतलीबाई के चार बच्चे थे- लक्ष्मीदास, रल्लतनबी, करनदास और मोहनदास।

यह कहा जाता है कि एक बच्चे के रूप में गांधीजी काफी शर्मीले और आरक्षित बच्चे थे लेकिन वह हमेशा ऊर्जा पर उच्च थे। राजा हरिश्चंद्र और श्रवण कुमार की कहानियाँ जो उन्होंने अपने बचपन के दौरान सुनीं, उनका उन पर बहुत प्रभाव पड़ा। ऐसा लगता है कि इन कहानियों ने उन्हें सच्चाई के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया। गांधीजी की मां जो एक अत्यंत धार्मिक महिला थीं, उनके लिए भी प्रेरणा का काम किया।

गांधी ने 13 साल की उम्र में मई 1883 में कस्तूरबाई माखनजी कपाड़िया से शादी की। उस समय कार्तुरबाई की उम्र 14 साल थी।

महात्मा गांधी – शिक्षा:

गांधीजी ने राजकोट के स्थानीय स्कूलों में पढ़ाई की। वह स्कूल में एक औसत छात्र था, हालांकि उसने पढ़ने के लिए एक प्रेम विकसित किया। उन्होंने स्कूलों में नियमित कक्षाएं लीं लेकिन खेल गतिविधियों में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई।

उन्होंने उच्च शिक्षा लेने के लिए जनवरी 1888 में भावनगर राज्य के सामलदास कॉलेज में दाखिला लिया, लेकिन जल्द ही वह बाहर हो गए। अगस्त 1888 में, वह इनर टेम्पल में कानून का अध्ययन करने के लिए लंदन चले गए। वह बचपन से ही स्वभाव से शर्मीले थे।

बैरिस्टर बनने के लिए दाखिला लेने में यह बाधा साबित हुई। हालांकि, महात्मा गांधी अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए केंद्रित और दृढ़ थे, इसलिए उन्होंने अपने क्षेत्र में शर्म और उत्तेजना को दूर करने के लिए एक सार्वजनिक बोलने के अभ्यास में शामिल हो गए। उन्होंने समर्पण के साथ अध्ययन किया और कानून की डिग्री प्राप्त की।

गांधीजी उच्च मूल्यों वाले एक अत्यंत परिश्रमी व्यक्ति थे। वह सरल जीवन और उच्च विचार में विश्वास करते थे। उनका जीवन वास्तव में दूसरों के लिए प्रेरणा है।

महात्मा गांधी पर लेख, 400 शब्द:

महात्मा गांधी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान प्रमुख नेताओं में से एक थे। वह सत्य और अहिंसा में दृढ़ता से विश्वास करते थे जिसका अर्थ सत्य और अहिंसा है। उन्होंने अंग्रेजों से लड़ने के लिए सत्याग्रह के मार्ग का अनुसरण किया और कई भारतीयों को इसमें शामिल किया।

हालाँकि कुछ स्वतंत्रता सेनानियों ने उनकी विचारधाराओं का विरोध किया और उनका मानना ​​था कि अंग्रेजों को केवल आक्रामक आंदोलनों और हिंसक तरीकों से देश से बाहर निकाला जा सकता है। हालाँकि, गांधीजी अपने अनूठे तरीकों से अंग्रेजों से लड़ते रहे। उन्होंने स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए विभिन्न सत्याग्रह आंदोलनों का नेतृत्व किया। उनमें से कुछ हैं:

असहयोग आंदोलन

इस आंदोलन की शुरुआत महात्मा गांधी ने अगस्त 1920 में की थी। यह दुर्भाग्यपूर्ण जलियांवाला बाग नरसंहार का बापू का जवाब था। इस आंदोलन में हजारों भारतीय शामिल हुए। अंग्रेजों द्वारा बेचे जाने वाले सामानों को खरीदने से मना करके वे अहिंसक साधनों से चले गए। उन्होंने स्थानीय उत्पादों का उपयोग करना शुरू कर दिया, जिससे देश में ब्रिटिश व्यवसाय में बाधा उत्पन्न हुई।

गांधीजी ने भारतीयों से खादी को स्पिन करने और अपने कपड़े बनाने और आत्मनिर्भर बनने का आग्रह किया। लोगों ने उनका अनुसरण किया और ब्रिटिश सामानों का बहिष्कार किया। इसने न केवल ब्रिटिश साम्राज्य को हिला दिया, बल्कि भारतीयों को भी करीब ला दिया और उन्हें एकजुट रहने की शक्ति का एहसास कराया।

दांडी मार्च और नमक सत्याग्रह

गांधीजी ने दांडी मार्च की शुरुआत वर्ष 1930 में 78 स्वयंसेवकों के साथ की थी। यह ब्रिटिश सरकार द्वारा पेश नमक पर कराधान के खिलाफ उनकी अहिंसक प्रतिक्रिया थी। गांधीजी और उनके अनुयायियों ने समुद्री जल से नमक का उत्पादन करने के लिए गुजरात के तटीय गाँव दांडी तक मार्च किया।

यात्रा 12 मार्च से 6 अप्रैल तक 25 दिनों तक चली। गांधीजी और उनके अनुयायियों ने इन 25 दिनों के दौरान 390 किलोमीटर की दूरी तय की, क्योंकि उन्होंने साबरमती आश्रम से दांडी तक मार्च किया। उनके रास्ते में कई लोग शामिल हुए। इस आंदोलन का अंग्रेजों पर और भी अधिक प्रभाव पड़ा।

भारत छोड़ो आंदोलन:

यह महात्मा गांधी द्वारा शुरू किया गया एक और आंदोलन था। भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत अगस्त 1942 में हुई थी और यह भारत के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास के प्रमुख आंदोलनों में से एक था। गांधीजी और कई अन्य नेताओं को इस आंदोलन के दौरान गिरफ्तार कर लिया गया। बाहर के लोग देश के विभिन्न स्थानों पर जुलूस और विरोध प्रदर्शन करते रहे। उन्हें बड़ी संख्या में उन लोगों का समर्थन प्राप्त था जो निस्वार्थ रूप से लड़ते थे।

गांधी जी के नेतृत्व में सभी आंदोलनों ने स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। गांधी जी की विचारधारा ने अपने समय के दौरान हजारों भारतीयों को प्रेरित किया और आज भी युवाओं को प्रभावित करना जारी है। कोई आश्चर्य नहीं, उन्हें राष्ट्र का पिता कहा जाता है।

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विकास नें वाणिज्य में स्नातक किया है और उन्हें भाषा और खेल-कूद में काफी शौक है. दा इंडियन वायर के लिए विकास हिंदी व्याकरण एवं अन्य भाषाओं के बारे में लिख रहे हैं.

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